बुधवार, 20 नवंबर 2019

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*दादू सेवक सांई का भया, तब सेवक का सब कोइ ।*
*सेवक सांई को मिल्या, तब सांई सरीखा होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *सेवा* 
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मनसुखदास जाति के कायस्थ थे । साधु सेवा में बड़ा प्रेम था । घर से सारा धन खर्च हो गया । कभी कभी तो उपवास भी होने लगे । किसी दुष्ट के बहकाने से साधु ने उन से मिठाई का भोजन मांगा । तब उनने अपनी स्त्री से पूछा की अब क्या किया जाय ? स्त्री ने अपने नाक में जो सुहाग चिन्ह मात्र आभूषण नथ थी उतार कर मनसुखदास के हाथ में रख दी । गहने गिरवी रख कर साधु की इच्छानुसार सेवा की ।
फिर भगवान ने मनसुखदास का रूप धारण करके कर्ज चुका कर नथ छुड़ा लाये । मनसुखदास की स्त्री चौका दे रही थी हाथ साफ न होने से उसने कहा - "आप ही पहना देवें" भगवान पहना कर चले गये । जब मनसुखदास को ज्ञात हुआ । तब उसने समझ लिया कि यह भगवान की लीला है । स्त्री को दर्शन हो गया और मुझे न हुआ इसलिये दर्शन के लिये मनसुखदास ने अन्न जल छोड़ दिया । 
तब स्वप्न में भगवान ने कहा - "काशी चले जाओ वहा दर्शन हो जायेंगे ।" मनसुखदास काशी जाकर भजन में ही तत्पर रहने लगे तब दर्शन हो गया । इससे सूचित होता है कि साधुसेवी का कर्ज भी भगवान चुका देते हैं ।
साधुसेवी का कर्ज भी, चुका देत हैं राम ।
मनसुखदास की नारि की, नथ ला दीन्ही धाम॥३५१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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