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*करणी किरका को नहिं, कथनी अनंत अपार ।*
*दादू यों क्यों पाइये, रे मन मूढ गँवार ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
एक बड़ी प्राचीन कथा है कि एक ब्राह्मण सदा लोगों को समझाता कि जो कुछ करता है परमात्मा करता है; हम तो साक्षी हैं, कर्ता नहीं।
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परमात्मा ने उसकी परीक्षा लेनी चाही। वह गाय बन कर उसकी बगिया में घुस गया और उसके सब वृक्ष उखाड़ डाले और फूल चर डाले और घास खराब कर दी और उसकी सारी बगिया उजाड़ डाली। जब वह ब्राह्मण अपनी पूजा—पाठ से उठ कर बाहर आया— पूजा—पाठ में वह यही कह रहा था कि तू ही है कर्ता, हम तो कुछ भी नहीं हैं, हम तो द्रष्टा—मात्र हैं— बाहर आया तो द्रष्टा वगैरह सब भूल गया।
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वह बगिया उजाड़ डाली थी; वह उसने बड़ी मेहनत से बनाई थी, उसका उसे बड़ा गौरव था। सम्राट भी उसके बगीचे को देखने आता था। उसके फूलों का कोई मुकाबला न था; सब प्रतियोगिताओं में जीतते थे। वह भूल ही गया सब पूजा—पाठ, सब साक्षी इत्यादि उसने उठाया एक डंडा और पीटना शुरू किया गाय को। उसने इतना पीटा कि वह गाय मर गई। तब वह थोड़ा घबड़ाया कि यह मैंने क्या कर दिया ! गौ—हत्या ब्राह्मण कर दे?
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और ब्राह्मणों की जो संहिता है, मनुस्मृति, वह कहती है, यह तो महापाप है। इससे बड़ा तो कोई पाप ही नहीं है। गौ—हत्या ! वह कंपने लगा। लेकिन तभी उसके शान ने उसे सहारा दिया।
उसने कहा, 'अरे नासमझ ! सदा तू कहता रहा है कि हम तो साक्षी हैं, यह भी परमात्मा ने ही किया। कर्ता तो वही है। यह कोई हमने थोड़े ही किया।' वह फिर सम्हल गया। गांव के लोग आ गए।
वे कहने लगे, महाराज ! ब्राह्मण महाराज, यह क्या कर डाला?
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उसने कहा, मैं करने वाला कौन ! करने वाला तो परमात्मा है। उसी ने जो चाहा वह हुआ। गाय को मरना होगा, उसे मारना होगा। मैं तो निमित्त मात्र हूं।
बात तो बड़े ज्ञान की थी। ज्ञान की ओट में छिप गया अहंकार। ज्ञान की ओट में छिपा लिया उसने अपने सारे पाप को। कोई इसका खंडन भी न कर सका। लोगों ने कहा, ब्राह्मण देवता पहले से ही समझाते रहे हैं कि यह सब साक्षी है; तब यह भी बात ठीक ही है, वे क्या कर सकते हैं।
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परमात्मा दूसरे दिन फिर आये, तब वह एक भिखारी ब्राह्मण की तरह आये। आ कर कहा कि अरे, बड़ा सुंदर बगीचा है तुम्हारा ! बड़े सुंदर फूल खिले हैं। यह किसने लगाया?
उस ब्राह्मण ने कहा, किसने लगाया? अरे, मैंने लगाया ! वह दिखाने लगा परमात्मा को ले जा, ले जा कर—जो वृक्ष उसने लगाए थे, संवारे थे, जो बड़े सुंदर थे।
और बार—बार परमात्मा उससे पूछने लगे, ब्राह्मण देवता, आपने ही लगाए? सच कहते हैं?
वह बार—बार कहने लगा, हाँ, मैंने ही लगाए हैं। और कौन लगाने वाला है? अरे और कौन है लगाने वाला मैं ही हूं लगाने वाला। यह मेरा बगीचा है।
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विदा जब होने लगा वह ब्राह्मण—छिपा हुआ परमात्मा—तो उसने कहा, ब्राह्मण—देवता, एक बात कहनी है मीठा—मीठा गप्प, कडुवा—कडुवा थू ! उसने कहा, मतलब? ब्राह्मण ने पूछा, तुम्हारा मतलब? मीठा—मीठा गप्प, कडुवा—कडुवा थू ! उसने कहा, अब तुम सोच लेना। गाय मारी तो परमात्मा ने, तुम साक्षी थे, और वृक्ष लगाए तुमने ! परमात्मा साक्षी है। अहंकार बड़ी तरकीबें करता है. मीठा—मीठा गप्प, कडुवा—कडुवा थू ! और वही उसके बचाव के उपाय हैं।
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क्रांति तो तब घटित होती है जब मनुष्य जानता है कि सर्वांश में मैं गलत था; समग्ररूपेण मैं गलत था; मेरा अब तक का होना ही गलत था। उसमें प्रकाश की कोई किरण न थी। वह सब अंधकार था। ऐसे बोध के साथ ही क्रांति घटित होती है और तत्क्षण प्रकाश हो जाता है। सुधारवादी न बनना। सुधारवादी से ज्यादा से ज्यादा मनुष्य सज्जन बन सकता है। क्रांति जीवन में संतत्व को लाएगी। ये जो संत हैं वे सज्जन से ज्यादा नहीं हैं। वास्तविक संत तो परम विद्रोही होता है।
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विद्रोह—स्वयं के ही अतीत से। विद्रोह— अपने ही समस्त अतीत से। वह अपने को विच्छिन्न कर लेता है। वह तोड़ देता है सातत्य। वह कहता है, मेरा कोई नाता नहीं उस अतीत से; वह पूरा का पूरा गलत था; मैं सोया था अब तक, अब मैं जागा। जब मनुष्य सोया था, तब सब गलत था। ऐसा थोड़े ही है कि सपने में कुछ चीजें सही थीं और कुछ चीजें गलत थीं, सपने में सभी चीजें सपना थीं। ऐसा थोड़े ही है कि सपने में से कुछ चीजें तुम बचा कर ले आओगे और कुछ चीजें खो जाएंगी। सपना पूरा का पूरा गलत है।
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अहंकार एक मूर्च्छा है, एक सपना है। उसे पूरा ही गलत जानें, यद्यपि अहंकार कोशिश करेगा कि कुछ तो बचा लो, एकदम गलत नहीं हूं कई चीजें अच्छी हैं। *अगर मनुष्य ने कुछ भी बचाया अहंकार से, अहंकार पूरा बच जाएगा। अगर सपने में से कुछ भी बचा लिया और लगता रहा कि यह सच है तो पूरा सपना बच जाएगा। क्योंकि जिसको सपने में अभी सच दिखाई पड़ रहा है, वह अभी जागा नहीं है।*

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