शनिवार, 9 नवंबर 2019

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*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कल्याण ३ (गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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९७ - परिचय । त्रिताल
जग सौं कहा हमारा, जब देख्या नूर तुम्हारा ॥टेक॥
परम तेज घर मेरा, सुख सागर माहिं बसेरा ॥१॥
झिलमिल अति आनन्दा, तहं पाया परमानन्दा ॥२॥
ज्योति अपार अनन्ता, खेलैं फाग वसन्ता ॥३॥
आदि अंत सुस्थाना, जन दादू सो पहचाना ॥४॥
इति राग कल्याण समाप्त: ॥३॥पद २॥
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ब्रह्म साक्षात्कार होने पर जगत् से निरपेक्षता दिखा रहे हैंहे परमेश्वर ! जब हमने आपके स्वरूप का साक्षात्कार कर लिया है, तब हमारा जगत् से क्या काम है ? 
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अब तो हमारा घर परम तेज स्वरूप परब्रह्म ही है । उसी सुख - सागर में हम बसते हैं । 
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जहां आत्म - ज्योति के झिलमिलाहट का अति आनँद हो रहा है, वहां ही हमें परमानन्द प्राप्त हुआ है । 
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यह आत्म - ज्योति अपार है, इसका अन्त नहीं दीखता । इसी के पास हमारा वसँतोत्सव के समान आनन्द से समय निकल रहा है । 
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अब हमने जो हमारा सृष्टि के आदि और अन्त में सुन्दर निवास - स्थान रहता है, उसी परब्रह्म स्थान को पहचान लिया है ।
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इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका राग कल्याण ॥समाप्त:॥३॥
(क्रमशः)

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