मंगलवार, 5 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू सरवर सहज का, तामें प्रेम तरंग ।*
*तहँ मन झूलै आत्मा, अपणे सांई संग ॥*
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साभार ~ Anand Nareliya

सरलता का अर्थ ही यही है कि महल के भीतर भी व्यक्ति ऐसे ही सो जाए, जैसे झाड़ के नीचे।

हमें एक तरह की कठिनता दिखाई आसानी से पड़ जाती है। अगर हम एक सम्राट को, जो महलों में रहने का आदी रहा हो, कीमती वस्त्र जिसने पहने हों, आज अचानक उसे लंगोटी लगा कर खड़ा कर दें, तो उसे बड़ी कठिनाई होगी। लेकिन कभी आपने सोचा कि जो लंगोटी लगाने का आदी होकर झाड़ के नीचे बैठा रहा हो, उसे आज हम सिंहासन पर बैठा कर कीमती वस्त्र पहना दें, तो कठिनाई कुछ कम होगी?

उतनी ही कठिनाई होगी। ज्यादा भी हो सकती है! ज्यादा भी हो सकती है, क्योंकि महल में रहने के लिए विशेष अभ्यास नहीं करना पड़ता, झाड़ के नीचे रहने के लिए विशेष अभ्यास करना पड़ता है। सुंदर वस्त्र पहनने के लिए कोई आयोजना और साधना नहीं करनी पड़ती, निर्वस्त्र होने के लिए साधना और आयोजना करनी पड़ती है। तो वह जो निर्वस्त्र खड़ा है, उसे अगर अचानक हम वस्त्र दे दें, तो हमारे वस्त्रों से वह बड़ा ही कष्ट पाएगा। उसके भीतर कठिनाई होगी।

डायोजनीज, एक फकीर, सुकरात से मिलने गया था। सुकरात बहुत सरल व्यक्ति था–वैसा सरल व्यक्ति, जिसने सरलता को साधा नहीं है। क्योंकि जिसने साधा, वह तो जटिल हो गया। सरलता भी साध कर लाई जाए, कल्टीवेट करनी पड़े, तो जटिल हो जाती है।

सुकरात सरल व्यक्ति था। उसने सरलता को कभी साधा नहीं था। उसने असरलता के विपरीत किसी सरलता को कभी पकड़ा नहीं था। डायोजनीज जटिल था। उसने सरलता को साधा था। वह अक्सर नग्न रहता, या अगर कभी कपड़े भी पहनता, तो चिथड़ों से जोड़ कर पहनता। अगर कभी नए कपड़े उसे कोई भेंट कर देता, तो उनको पहले काट कर, टुकड़े करवा कर, पुनः जुड़वा कर, तभी उन्हें पहनता। अगर कोई नए कपड़े भेंट कर देता, तो पहले उन्हें गंदे करता, सड़ाता, खराब करता, फिर चिथड़े बनाता, फिर उन्हें जोड़ता। सरलता का अभ्यासी था।

सुकरात को मिलने आया। सुकरात से उसने कहा, तुम्हें इन इतने सुंदर वस्त्रों में देख कर मुझे लगता है, कैसे तुम साधु हो? कैसी तुम्हारी सरलता? सुकरात हंसने लगा और उसने कहा, हो सकता है, सरल मैं न होऊं; हो सकता है, तुम जो कहते हो, वह ठीक है।

डायोजनीज नहीं समझ पाया होगा कि सरल व्यक्ति का यह लक्षण है। तो डायोजनीज ने कहा कि तुम खुद ही स्वीकार करते हो? यही तो मैंने लोगों से कहा था कि सुकरात सरल आदमी नहीं है। तुम खुद भी स्वीकार करते हो, मुहर लगाते हो मेरी बात पर? सुकरात ने कहा, तुम कहते हो, तो इनकार करने का मैं कोई कारण नहीं पाता हूं; असरल ही होऊंगा। डायोजनीज खिलखिला कर हंसने लगा।

जब वह उतर रहा था नीचे, तो सुकरात का शिष्य प्लेटो उसे द्वार पर मिला। उसने प्लेटो से कहा कि सुनो, तुम्हारे गुरु ने लोगों के सामने स्वीकार की है यह बात कि वह सरल नहीं है।

प्लेटो ने नीचे से ऊपर तक देखा और कहा कि तुम्हारे फटे चिथड़ों में जो छेद हैं, उनमें से सिवाय अहंकार के और कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। तुम कृपा करके नंगे कभी मत होना, नहीं तो सिवाय अहंकार के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ेगा। तुम्हारे छेद में से सिर्फ अहंकार ही दिखाई पड़ता है। प्लेटो ने कहा, तुम समझ ही नहीं पाए, यही तो सरल आदमी का लक्षण है कि तुम उससे कहने जाओ कि तुम सरल नहीं हो तो वह स्वीकार कर लेगा। और तुम्हारी यह घोषित सरलता बड़ी असरल है, बहुत जटिल है।

सरलता अगर सचेष्ट है, तो जटिल हो जाती है। और जटिलता भी अगर निश्चेष्ट है, तो सरल हो जाती है।

असली सवाल द्वंद्व के बीच चुनाव का नहीं है। जब भी हम दो में से किसी एक को चुनते हैं, तो बड़ी मजे की बात यह है, कि उससे विपरीत तत्काल मौजूद हो जाता है। अगर हमने अहिंसा साधी, तो हमारे भीतर हिंसा का तत्व तत्काल मौजूद हो जाता है। इसलिए जो भी अहिंसा साधेगा, वह बहुत सूक्ष्म रूप से हिंसक हो जाएगा। उसकी हिंसा को पहचानना मुश्किल होगा, लेकिन वह हिंसक हो जाएगा। जो ब्रह्मचर्य साधेगा, वह बहुत गहरे तल पर कामातुर हो जाएगा। विपरीत के बिना हम कुछ साध ही नहीं सकते। क्योंकि साधने के लिए विपरीत से लड़ना पड़ता है।...osho

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