मंगलवार, 5 नवंबर 2019

= सुन्दर पदावली(फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - ११/१२) =

#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - ११/१२ =* 
*तापस कै काचा मता । तप करि जारत गात ।* 
*माल मुलक चाहै रमा । तरसत ही दिन जात ॥११॥* 
वह तपस्वी जो तपश्चर्या द्वारा भगवत्प्राप्ति का इच्छुक है, उस का मत भी मिथ्या ही है, क्योंकि उससे केवल शरीर ही क्षीण होना है । उससे उसको अन्य कोई लाभ नहीं मिल सकता । हम संसार का समस्त धन अपने अधीन करना चाहते हैं; परन्तु उसके लिये जीवन पर्यन्त ललचाये ही रहते हैं, वह मिल नहीं पता । अतः हमारा जीवन भी व्यर्थ ही हुआ ॥११॥ 
*गेरत नग नर जग मगे । हरिनाक्षी अति प्रेह ॥* 
*येकन जान्यौ जिनि किये । हठ सिर डारी षेह ॥१२॥* 
ऐसे पुरुष, जो जगत् के मार्ग(विषयवासना) में अनुरक्त रहकर सम्भोग में अपने वीर्य का क्षय करते हैं, अपनी मृगनयनी से अनुरक्त रहते हैं, वे अद्वैत (परमात्मा) का साक्षात्कार नहीं कर पाते । उनने वृथा दुराग्रह कर अपना जीवन ही विनष्ट कर दिया । उनके शिर पर दुनियां धूल ही डालेगी(उनकी निन्दा ही होगी।) ॥१२॥
(क्रमशः)

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