बुधवार, 27 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सब सुख मेरे साँइयाँ, मँगल अति आनन्द ।*
*दादू सज्जन सब मिले, जब भेंटे परमानन्द ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ निष्कर्मी पतिव्रता का अंग)*
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श्रेष्ठ पुरुष जो जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी उस उस के ही अनुसार बर्तते हैं। वह पुरुष जो कुछ प्रमाण कर देता है, लोग भी उसके अनुसार बर्तते हैं। मनुष्य के चित्त का एक बहुत बुनियादी लक्षण दुसरों का अनुसरण करना है। सौ में से निन्यानबे व्यक्ति अनुसरण करने वाले होते हैं, सौ में से निन्यानबे लोग वही नहीं होते, जो उन्हें होना चाहिए; वही होते हैं, जो वे अपने चारों तरफ लोगों को देखते हैं कि लोग हैं।
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छोटे बच्चे अनुसरण करते हैं, सब कुछ अनुसरण से ही छोटे बच्चे सीखते हैं। परन्तु हममें से बहुत कम लोग हैं, जो छोटे बच्चों की सीमा पार कर पाते हैं। हममें से अधिक लोग जीवन भर ही छोटे बच्चे रह जाते हैं। हम केवल अनुसरण ही करते हैं। हम देख लेते हैं, वही करने लगते हैं।
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यदि आज से हम हजार साल पहले भारत के गांव में जाते, तो बच्चे ओंकार की ध्वनि करते मिलते। ऐसा नहीं कि बच्चे कोई बहुत पवित्र थे। अभी उसी गांव में जाएं, बच्चे फिल्मी गाना गाते मिलते हैं। ऐसा नहीं कि बच्चे अपवित्र हो गए हैं। नहीं, बच्चे तो वही करते हैं, जो चारों तरफ हो रहा है। जो बच्चे ओंकार की ध्वनि कर रहे थे वे कोई बहुत पवित्र थे, ऐसा नहीं है। परन्तु ओंकार की ध्वनि से पवित्रता के आने का द्वार खुलता था। और जो बच्चे फिल्म का गीत गा रहे हैं, वे कोई अपवित्र हैं, ऐसा नहीं है। परन्तु फिल्म के गीत से पवित्रता का द्वार बंद होता है। परन्तु वे तो अनुसरण कर रहे हैं।
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बच्चों की तो बात छोड़ दें। हम जानते हैं कि बच्चे तो अनुसरण करेंगे, परन्तु कभी हमने सोचा कि हम इस उम्र तक भी अनुसरण ही किए जा रहे हैं। हम वस्त्र वैसे पहन लेते हैं, जैसे दूसरे लोग पहने हैं। हम घर वैसा बना लेते हैं, जैसा दूसरे लोगों ने बनाया है। हम पर्दे वैसे लटका लेते हैं, जैसा पड़ोसियों ने लटकाया है। हम कार वैसी खरीद लेते हैं, जैसी पडोसी लोग खरीदते हैं।
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श्री कृष्ण एक और गहरी बात इसमें कह रहे हैं। वे अर्जुन से कह रहे हैं कि तू उन पुरुषों में से है, जिन पर लाखों लोगों की नजर होती है। तू जो करेगा, वही वे लोग भी करेंगे। यदि तू जीवन से भाग गया, तो वे भी भाग जाएंगे। और हो सकता है कि तेरे लिए जीवन से भागना बड़ा प्रामाणिक हो, तो भी वे लाखों लोग गैर प्रामाणिक तरिके से जीवन से भाग जाएंगे।
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श्री कृष्ण यह कह रहे हैं कि हे अर्जुन, अनेको लोग तुझे देखकर जीते हैं। अर्जुन साधारण व्यक्ति नहीं है। अर्जुन असाधारण व्यक्तियों में से है। उस सदी के असाधारण लोगों में से है। अर्जुन को लोग देखेंगे। अर्जुन जो करेगा, वह अनेकों के लिए प्रमाण हो जाएगा। अर्जुन जैसा जीएगा, वैसा करोड़ों के लिए अनुकरणीय हो जाएगा। तो कृष्ण कहते हैं, तुझे देखकर जो लाखों लोग जीते हैं, यदि तू भागता है, वे भी जीवन से भाग जाएंगे। यदि तू पलायन करता है, वे भी पलायन कर जाएंगे। यदि तू विरक्त होता है, वे भी विरक्त हो जाएंगे।
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तो हे अर्जुन, उचित ही है कि तू अनासक्त हो जा, तो संभवतया उनमें भी अनासक्ति का विचार पहुंचे। तेरी अनासक्ति की सुगंध उनके भी नासापुटों को पकड़ ले। तेरी अनासक्ति का संगीत, हो सकता है, उनके भी हृदय के किसी कोने की वीणा को झंकृत कर दे। तेरी अनासक्ति का आनंद, हो सकता है, उनके भीतर भी अनासक्ति के फूल के खिलने की संभावना बन जाए। तो तू उन पर ध्यान रख। यह केवल तेरा ही प्रश्न नहीं है। क्योंकि तू सामान्यजन नहीं है, असामान्य है; तुझे देखकर न मालूम कितने लोग चलते, उठते और बैठते हैं। तू उनका भी विचार कर। और यदि तू अनासक्त हो सके, तो उन सबके लिए भी तेरा जीवन मंगलदायी हो सकता है।
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*श्री कृष्ण ने जब यह कहा अर्जुन से, तो उस कहने का प्रयोजन इतना ही है कि तेरे ऊपर न जाने कितने लोगों की आंखें हैं। तू ऐसा कुछ कर, तू कुछ ऐसा जी कि उनके जीवन में तेरा अनुशासन, मार्ग, प्रकाश, ज्योति बन सके। उनका जीवन तेरे कारण अंधकारपूर्ण न हो जाए। इससे लोकमंगल सिद्ध होता है।*

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