बुधवार, 27 नवंबर 2019

= सुन्दर पदावली(नाग बंध. ११) =

#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= (नाग बंध. ११) =*
*मनहर छंद* 
*जनम सिरानौ जाइ भजन बिमुख शठ,* 
*काहै कौं भवन कूप बिन मीच मरि है ।* 
*गहित अबिद्या जानि शुक नलिनी ज्यौं मूढ़,* 
*करम बिकरम करत नहि डरि है ।* 
*आपु ही तैं जात अंध नरकनि बार बार,* 
*अजहुं न शंक मन मांहि अब करि है ।* 
*दुख कौ समूह अवलोकि कैं न त्रास होइ,* 
*सुन्दर कहत नर नागपासि परि है ॥२१॥* 
अरे मूर्ख ! तेरा जन्म(आयु) बीतता जा रहा है, तूँ भजन नहीं कर रहा है । ऐसे तूं कूएँ में गिर कर क्यों अपनी मृत्यु स्वयं बुला रहा है । जैसे कोई तोता, जान बूझ कर नलिनी को पकड़ कर अपनी मृत्यु स्वयं बुला लेता है, वैसे ही तूँ भी जान बूझकर कर्म कुकर्म करता हुआ किसी का भय नहीं मान रहा है । अरे अन्धे ! तूँ स्वयं ही नरक की ओर दौड़ा जा रहा है, और तुझे किसी प्रकार का भय भी नहीं हो रहा है । इस सम्मुखस्थ दुःखसमूह को देखकर तेरे मन में कोई कष्ट नहीं होता । *महात्मा सुन्दरदासजी* कहते हैं – अरे मूढ़ प्राणी ! इस रीति से तो स्वयं ही नागपाश में बंध जायगा ॥२१॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें