शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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८९ - भक्ति उपदेश । त्रिताल
पूजेँ पहली गणपति राइ,
पड़िहूं पायों चरणों धाइ ।
आगैं ह्वै कर तीर लभावै, 
सहजैं अपने बैन सुनाइ ॥टेक॥
कहूं कथा कुछ कही न जाइ, 
इक तिल में ले सबै समाइ ॥१॥
गुण हु गहीर धीर तन देही,
ऐसा समरथ सबै सुहाइ ॥२॥
जिस दिशि देखूँ ओही है रे, 
आप रह्या गिरि तरुवर छाइ ॥३॥
दादू रे आगै क्या होवै, 
प्रीति पिया कर जोड़ लगाइ ॥४॥
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भक्ति का उपदेश कर रहे हैं, जो सुर - गण, मुनि - गण, नर - गण आदि सभी समेहों के स्वामी हैं, विश्व के राजा हैं । हम दौड़ के उन प्रभु के चरणों में पड़कर प्रथम उनके पाद - पद्मों की ही पूजा करते हैं । 
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वे साधन पथ में हमारे आगे रहकर, मकर - मत्स्य रूप कामादि शत्रुओं को वस्तु - विचारादि बाण मार कर भवसागर से पार किनारे लगाते रहते हैं और ध्यानावस्था में अनायास ही अपने मधुर वचन सुना कर हम को साधन - मार्ग दिखाते रहते हैं । 
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उनके बल की कथा क्या कहूं, कुछ कहने में नहीं आती । वे एक क्षण मात्र में सँसार को अपने में वो तिल मात्र स्थल में लयकर लेते हैं । 
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उनके गुण अथाह हैं । शरीर पर अपार धैर्य है । सँपूर्ण जीवों के शरीरों को अपनी सत्ता से धारण करते हैं, ऐसे समर्थ और सब प्रकार सुन्दर हैं । 
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जिस दिशा में भी हम देखते हैं, वे ही दीखते हैं । वे पर्वत - वृक्षादि सभी में स्थित हैं । अत: हे लोगो ! अभी से हाथ जोड़ कर उन प्रभु में प्रीति पूर्वक मन को लगाओ । 
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आगे वृद्धावस्था में शरीर की क्रिया भी करना कठिन होगा, तब तुम से प्रभु प्राप्ति का क्या साधन हो सकेगा ?
(क्रमशः)

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