शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

= ११३ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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११३ - गुरु उपदेश । ललित ताल ।
भाई रे, तेन्हों रूड़ो१ थाये२, 
जे गुरुमुख मारग जाये ॥टेक॥
कुसंगति परिहरिये, सत्संगति अणसरिये ॥१॥
काम क्रोध नहिं आणैं, वाणी ब्रह्म बखाणैं ॥२॥
विषिया तैं मन वारै, ते आपणपो तारै ॥३॥
विष मूकी३ अमृत लीधो, दादू रूड़ो१ कीधो ॥४॥
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गुरुमुख उपदेश की विशेषता बता रहे हैं, हे भाई ! तुम्हारे लिये बहुत सुन्दर१ हुआ२ कि तुम गुरु की आज्ञानुसार साधन मार्ग पर चल रहे है हो जो कल्याण कारक है । 
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और कुसंगति को त्याग कर सत्संग में रहते हुये काम - क्रोधादि को हृदय में स्थान न देकर, 
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ब्रह्म सम्बन्धी वाणी बोलते हो जो विषयों से मन को दूर रखते हैं, वे अपने को सँसार से तार लेते हैं । 
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तुमने विषय - विष को त्याग३ कर भगवन्नामामृत का पान कर लिया है, यह बहुत अच्छा१ किया है ।
(क्रमशः)

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