शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कल्याण ३ (गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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९६ - उपदेश चेतावनी । त्रिताल
मन मेरे कछु भी चेत गंवार !
पीछे फिर पछतावैगा रे, आये न दूजी बार ॥टेक॥
काहे रे मन भूलो फिरत है, काया सोच विचार ।
जिन पँथों चलना है तुझको, सोई पँथ संवार ॥१॥
आगै बाट विषम जो मन रे, जैसी खाँडे की धार ।
दादू दास साँई सौं सूत१ कर, कूड़े काम निवार ॥२॥
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मन के ब्याज से उपदेश द्वारा साधकों को सचेत कर रहे हैं, हे मन ! कुछ तो सावधान हो, नहीं तो पीछे पश्चात्ताप ही करेगा । कारण, अचेत रहने से तू पुन: मनुष्य शरीर में भी न आ सकेगा । 
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अरे ! तू प्रभु को भूलकर विषयों में भटक रहा है । इस शरीर की अनित्यता को ध्यान में रखते हुये जिन साधन मार्गों से तुझे चलना है, विचार द्वारा उन साधन - पथों को ठीक कर । 
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रे मन ! आगे चलने का जो परमार्थ मार्ग है, वह कामादि द्वारा भयँकर हो रहा है, उसमें चलना खाँडे की धार पर चलना है । अत: तू बुरे कामों को छोड़कर सीधा भजन द्वारा परमात्मा से मेल१ कर, तो ही तेरा आगे निर्वाह होगा ।
(क्रमशः)

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