शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

= *दया निर्वैरता का अंग ९१(५/८)* =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।*
*परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥*
=================
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*दया निर्वैरता का अंग ९१* 
नर निर्वैरी होत ही, सब जगत वा१का दास । 
रज्जब दुविधा दूर गई, उर आये इखलास२ ॥५॥ 
नर के निर्वैरी होते ही सब जगत उस१का दास बन जाता है, हृदय में प्रेम२ आते ही दुविधा दूर चली जाती है । 
निर्वैरी नौ खण्ड में, साधु सुहृद् ही होय । 
तो रज्जब तिहुं लोक में, वैरी नाँहिं कोय ॥६॥ 
पृथ्वी के नौओं खण्डों में निर्वैरी सुहृद् साधु ही हों तो तीनों लोकों में वैरी कोई भी न दिखाई दे । 
चौरासी लख जीव परि, साधू होय दयाल । 
रज्जब सुखदे सबन को, तन मन कर प्रतिपाल ॥७॥
सन्त चौरासी लक्ष योनियों के सभी जीवों पर दयालु रहते हैं, उनके तन-मन का पोषण करके सभी को सुख प्रदान करते हैं । 
इस के मारण की नहीं, तो इस हि न मारे कोय । 
कुशल वांछतां१ और की, अपणे कुशल सु होय ॥८॥ 
यदि इस प्राणी के हृदय में दूसरे को मारने की इच्छा नहीं होती तो इसे कोई नहीं मार सकता, अन्य के कुशल की इच्छा१ करने से अपने लिये ही कुशल-मंगल होता है । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें