शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

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*दादू पलक मांहि प्रकटै सही, जे जन करैं पुकार ।*
*दीन दुखी तब देखकर, अति आतुर तिहिं बार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विनती का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर* 
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मुगल शासनकाल में दक्षिण के रंजनम गांव में शान्तोबा नामक एक धनी व्यक्ति रहता था । भक्त तुकारामजी के संग से उसे वैराग्य हो गया । सब धन गरीबों को खिलाकर भजन करने वन में चला गया । सम्बन्धियों ने उसे लाने के लेये उसकी स्त्री को भेजा । वह भी पति के पास रह कर भजन करने लग गई । 
एक दिन वह भिक्षा लेकर आ रही थी, वर्षाकाल था, भीमा नदी का प्रवाह प्रबल हो रहा था । पतिदेव भूखे रहेंगे तथा यह वनप्रदेश है मैं अकेली हूँ इत्यादि विचारों ने उसे बड़ा दुख: हुआ तब भगवान् को याद किया । भगवान् एक केवट के रूप में प्रकट होकर उसे पार कर गये । इससे सूचित होता है कि भगवान् पतिव्रताओं के कष्ट को दूर करते हैं ।
पतिव्रता के कष्ट को, हरते हैं करतार ।
शांतोबा तिय को प्रभु, कर गये सरिता पार॥१०१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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