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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (चित्र बंध, कमल बंध. २) =*
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*छप्पय*
*दरसन अति दुख हरण,*
*रसन रस प्रेम बढ़ावन ॥*
*सकल विकल भ्रम दलन,*
*बरन बरनौ गुन पावन ॥*
*सुढरन कृपा निधान,*
*षबरि जन की प्रतिपालन ॥*
*हलन चलन सब करन,*
*रितय करि भरि पुनि ढारन ॥*
*सठ संमझि बिचारि संभारि मन,*
*रहत न काहे परि चरन ॥*
*नम नरक निवारन जानि जन,*
*सुंदर सब सुख हरि सरन ॥२॥*
जिन भगवान् का दर्शन सभी कष्टों का निवारक है । नाम रटने पर वह जिह्वा के रस का माधुर्य तथा प्रेम का वर्धक है । समस्त सांसारिक भ्रान्तियों का निवारक है । उसके गुणों का वर्णन मानसिक पवित्रता देने वाला है । वह कृपा का खजाना है । भक्तजनों का रक्षक है ।
संसार की सभी गतिविधियों का संचालक है । वह दीन जनों पर दयालु है । अरे मुर्ख मन ! तूं उनके विषय में यह जान कर उनकी शरण में क्यों नहीं चला जाता । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – अतः तूँ हरि चरणों को नरकनिवारक तथा सुखदायी जानकर उनकी ही शरण में चला जा ॥२॥
(क्रमशः)
अमूल्य रचना प्रणाम
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