रविवार, 24 नवंबर 2019

= सुन्दर पदावली(बृक्ष बंध. १०/१) =


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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (बृक्ष बंध. १०/१) =*
*दोहा* 
*प्रगट बिश्व यह बृक्ष है, मूला माया मूल ।* 
*महातत्व अहंकार करि, पीछे भया सथूल ॥१२॥* 
यह विश्व एक प्रकार से वृक्षरूप है । मूला अविद्या इसकी जड है । आगे चलकर महत्तत्व आदि से इसका स्थूल विस्तार होता है ॥१२॥ 
तुल.- “ऊर्ध्वमूलमध: शाखम्” (भ. गो. अ. १५, श्लो. १) 
*शाषा त्रिगुन त्रिधा भई, सत रज तम प्रसरंत ।* 
*पंच प्रशाषा जानि यौं, उपशाषा सु अनंत ॥१३॥* 
इसकी शाखाएँ सत्व रजतम – इन तीन गुणों के साथ मिलकर त्रिधा विभक्त हो जाती है । तदन्तर(महत् तत्त्व, अहंकार एवं त्रिगुण मिलाकर) इसकी पाँच प्रशाखा बन जाती है । इस प्रकार, इसका क्रमशः इसका विस्तार होते हुए यह अनन्त शाखाओं के उपशाखाओं के रूप में अतिशय विस्तार प्राप्त कर लेती है ॥१३॥ 
*अवनि नीर पावक पवन, व्योम सहित मिलि पंच ॥* 
*इनही कौ विस्तार है, जे कछु सकल प्रपंच ॥१४॥*
यह दृश्यमान समस्त जगत्प्रपंच पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश – इस प्रकार इन पाँच तत्त्वों से मिलकर अतिशय विस्तृत हो जाता है ॥१४॥
(क्रमशः)

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