🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
.
*स्मरण नाम महिमा माहात्म्य*
*दादू राम नाम निज मोहनी, जिन मोहे करतार ।*
*सुर नर शंकर मुनि जना, ब्रह्मा सृष्टि विचार ॥६८॥*
रामनाम में अद्भुत शक्ति है । ‘राम’-इन दो अक्षरों के उच्चारणमात्र से मन मुग्ध हो जाता है । अधिक क्या कहें, भगवान् के नाम की जिस शक्ति से मनुष्य, मुनिजन, देवता, शंकर, सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा और स्वयं परमात्मा भी मुग्ध हो जाता है कि मेरे नाम के प्रताप से पत्थर भी जल में तैरने लगते हैं । सम्पूर्ण संसार जिसके वश में है, वह भी भक्तों के चरणों की धूल का स्पर्श करता है । सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा भी प्रार्थना करता है-
“हे अनन्त ! ए आदि परमात्मन् ! मेरी मुर्खता तो देखो कि जो मायापति है, उस पर भी अपना माया वैभव दिखाने के लिये मैंने माया रची है । हे प्रभो ! जैसे अग्नि के सामने उसकी छोटी सी चिनगारी क्या शक्ति रखती है, ऐसे ही आपके सामने मेरी क्या शक्ति है कि मैं अपनी माया से आप को मुग्ध कर पाऊं ! अतः मेरे अपराध को क्षमा करे; क्योंकि मैं आपको न जानने के कारण रजोगुण होकर आप से भिन्न मैं अपने आपको शासन योग्य मानने लगा !”
“द्रौपदी ने मुझे ‘हे गोबिन्द’ शब्द जोर से पुकारा । कुछ आने में विलम्ब हो गया सो मैं उसका ऋणी हूँ । अतएव मैं उसके हृदय से नहीं जाता॥६८॥”
.
*दादू राम नाम निज औषधि, काटै कोटि विकार ।*
*विषम व्याधि थैं ऊबरै, काया कंचन सार ॥६९॥*
रोग का कारण पाप है । औषधि से रोगनिवृत्त होता है । सकल रोगों को दूर करने की शक्ति राम-नाम में है, यह लोक-प्रसिद्ध है । अविद्या दोष ही सब रोगों को पैदा करता है । उन सब रोगों को भक्त रामनाम औषधि से दूर करते है । विष्णुसहस्त्रनाम में लिखा है- “रोग से पीड़ित व्यक्ति विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने से रोग मुक्त हो जाता है । सच बात तो यह है कि राम नाम में पाप को निवृत्त करने की जितनी शक्ति है, उतना पापी पाप कर ही नहीं सकता । जन्म और मृत्यु ही विषम व्याधि है, उसका नाश भी भगवान् के नाम से हो जाता है । लिखा है-
“उस परात्पर परमात्मा के जान लेने से हृदय की ग्रन्थि नष्ट हो जाती है, सब संशय दूर हो जाते हैं तथा समग्र कर्म निर्मूल हो जाते हैं ।”
‘काया कंचन सार’ इसका यही अभिप्राय है कि काया में ‘मैं स्थूल हूँ, मैं गौर वर्ण हूँ’ -ऐसा अभिमान ही रोग है । योग वासिष्ठ में लिखा है-
‘अहंकार से ही आपत्ति आती है और अहंकार से ही रोग होते हैं । अहंकार से ही इच्छा होती है, अतः मेरी दृष्टि में अहंकार ही सब से बड़ा रोग है ।’
राम नाम स्मरण करने से अहंकार की निवृत्ति हो जाती है अर्थात् निरभिमानिता आ जाती है । अतः भक्तों का शरीर कंचन की तरह पूज्य होता है ॥६९॥”
.
*दादू निर्विकार निज नांव ले, जीवन इहै उपाय ।*
*दादू कृत्रिम् काल है, ताके निकट न जाय ॥७०॥*
यहाँ ‘राम’ नाम शब्द से परब्रह्म परमात्मा का ही ग्रहण है । अतः निर्विकार ब्रह्म का निर्विकार मन से सतत स्मरण करना चाहिये, क्योंकि मनुष्य जन्म का यही फल है ।
दादू कृत्रिम काल है का अभिप्राय यह है की मायारचित इस लोक या परलोक के पदार्थों का भोग कालरूप है । अतः उन में आसक्ति नहीं करना, अन्यथा हमारा पतन हो जायेगा । लिखा है-
‘गोविन्द’ आदि नामों को एक बार भी यदि प्रेम से याद करे तो मानव के सैकड़ों योनियों के पाप भी वैसे जल जाते हैं जैसे रुई को अग्नि जला डालती है ॥७०॥
.
*स्मरण*
*मन पवना गहि सुरति सौं, दादू पावै स्वाद ।*
*सुमिरण माहिं सुख घणा, छाड़ि देहु बकवाद ॥७१॥*
मन, प्राण व इन्द्रियों को निरुद्ध कर एकाग्र मन से यदि कोई हरि को भजता है तो वह भजनानन्द को प्राप्त करता है । जब हरि के स्मरण से ही सब सुख प्राप्त हो जाते हैं तो फिर कष्टप्रद अन्य साधनों से क्या मतलब? कहा भी है-
“यदि आक में ही मधु(शहद) मिल जाय तो कोई उसे पर्वत पर जाकर अन्य वृक्षों में खोजने का प्रयास क्यों करे?”
भागवत में लिखा है-
आत्मा को मेरी दृढ़भक्ति जैसा पवित्र कर सकती है वैसे स्वाध्याय, तप, त्याग, सत्य व दया से युक्त धर्म तथा विद्या आदि साधन भी नहीं कर पाते । अतः आत्मा की पवित्रता का हरि भक्ति ही एकमात्र श्रेष्ठ साधन है ॥७१॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें