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*जहँ सेवक तहँ साहिब बैठा, सेवक सेवा मांहि ।*
*दादू सांई सब करै, कोई जानै नांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *भक्त*
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भक्त होथी काठियावाड़ के नेकनाम गांव के सिकन्दर नामक मुसलमान के पुत्र थे । बचपन से ही मोरार साहिब की भजन मंडली में जाकर भजन गाया करते थे और संत सेवा किया करते थे । इससे उनके पिता उन्हें सदा दुख दिया करते थे किन्तु उनका उपरोक्त कार्य बढता ही गया । राम नाम में सच्ची लगन थी । हिन्दू - मुसलमान धर्म का भेद मिट गया था ।
एक दिन पिता ने उन्हें भजन मंडली में जाने से रोका किन्तु वे नहीं रुके । जब दुसरे दिन होथी भजन मंडली में जाने लगे तब पिता ने कहा - 'बेटा ! यह विष तैयार है, इसे या तो तू पी जा, नहीं तो मैं पीता हूं । तेरे राम प्रेम की बदनामी मुसलमान जाति में मैं अब सहन नहीं कर सकता ।' होथी - 'आप न पिवे मैं ही पीऊंगा ।' फिर विष का प्याला हाथ में लेकर भगवान प्रार्थना करते हुये बोले - 'भगवन ! विष से मेरी मृत्यु हो जाय इसकी मुझे चिंता नहीं है किन्तु आप तथा आपकी भक्ति को लाज लगे यह मुझे भी सहन नही होगा ।'
यह कह कर विष पी लिया और अपना कमरा बंद करके भजन करने लग गया। पिता ने बाहर से ताला बंद कर दिया । उधर भजन मंडली में भी वे प्रतिदिन की भांति भजन गाते दिखाई दे रहे थे । भजन मंडली से आने वालों से सुनकर उनका पिता भजन मंडली में गये और गाते देखा कि होथी प्रेम में मग्न झूमते हुये भजन गा रहे है । पुन: घर में आकर कमरे का ताला खोल कर देखा तो वहां भी होथी थे । उस दिन के बाद पिता ने उन्हें भजन मंडली में जाने नहीं रोका ।
निजचरिया से व्यथित को, देत भक्त आनंद।
पिता हर्ष हित विष पिया, होथी ने सानन्द ॥४३७॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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