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*परमेश्वर के भाव का, एक कणूँका खाइ ।*
*दादू जेता पाप था, भ्रम कर्म सब जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *महा प्रसाद*
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महाप्रसाद के पाने से ही अग्रदास के शिष्य नारायणदास को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ था । गुरु की नाभी प्रदेश की बात जान लेने के कारण ही गुरु ने उनका नाम नाभा रखा था । अपने दिव्य ज्ञान से ही उन्होंने गुप्त प्रगट सब भक्तों की कथाऐं जानकर भक्त माल की रचना की थी । इससे सूचित होता है कि महा प्रसाद से दिव्य ज्ञान भी प्राप्त होता है ।
होता महा प्रसाद से, दिव्यज्ञान सत बात ।
नाभाजी को हुआ था, कथा परमप्रख्यात॥१६४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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