🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*चार पदार्थ मुक्ति बापुरी, अठ सिधि नव निधि चेरी ।*
*माया दासी ताके आगे, जहँ भक्ति निरंजन तेरी ॥*
=================
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*कमला काढ का अंग ९४*
.
शक्ति१ सजीवनि जड़ी ज्यों, दुर्लभ लही न जाय ।
को ल्यावै हनुमंत ज्यों, उर२ गिरि सहित उठाय ॥१३॥
माया१ सजीवनि बूंटी के समान दुर्लभ है, सहज ही प्राप्त नहीं की जाती, जैसे हनुमान पर्वत के सहित सजीवनी बूंटी ले आये थे, वैसे ही कोई समर्थ संत हृदय२ सहित माया को उठा लाते हैं, अर्थात प्राणी का हृदय भी उनकी और खिंच जाता है और हृदय से माया की आसक्ति भी निकल जाती है ।
.
मन सु मरुस्थल१ देश, सम, शक्ति२ सलिल३ अति दूर ।
साधु सगर से काढ हीं, औरों कढे न मूर४ ॥१४॥
मारवाड़१ में जल३ पृथ्वी में बहुत दूर नीचे है, उसे सगर नरेश के पुत्रों ने ही निकाला था, अन्य से यह अपने मूल-स्थान४ से बाहर नहीं निकलता, वैसे ही मन में माया२ बहुत गहरी बैठी हुई है, उसे सगर पुत्रों के समान परमार्थ में पुरुषार्थ करने वाला संत ही निकाल सकता है अन्य से मूलाज्ञान४ के सहित नहीं निकलती ।
.
मन समुद्र माया मुकत१, सुरति२ सीप के माँहिं ।
साधू मरजीवों बिना, रज्जब निकसे नाँहिं ॥१५॥
समुद्र की सीप में मोती१ होता है, वह मरजीवों बिना नहीं निकल सकता, वैसे ही मन की वृत्ति२ में माया है, वह संत बिना नहीं निकल सकती ।
.
ज्यों अपसरा आकाश में, त्यों हरिसिद्धि हिय आनि ।
रज्जब शूर सु संत परि, उभय ऊतरै आनि ॥१६॥
आकाश में स्वर्ग की अप्सरा होती हैं, वैसे ही हृदय में माया है । अप्सरा शूरवीर के लिये नीचे उतरती है, वैसे ही श्रेष्ठ संत के उपदेश से हृदय से माया उतरती है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें