🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू ब्रह्म जीव हरि आत्मा, खेलैं गोपी कान्ह ।*
*सकल निरन्तर भर रह्या, साक्षीभूत सुजान ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साक्षीभूत का अंग)*
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साभार ~ Rupa Khant BAPU KE SHABD.....
खुद को दाद दो .....
देवराज इंद्र ने प्रभु से कहा कि हमारे लिए आप ने अवतार लिया .....अब हमें कुछ सेवा दो..... तब प्रभु ने कहा कि तू अमृत की वर्षा कर और सब को जीवित कर...... राम का इरादा किसी को मारने का था ही नहीं...... डॉक्टर का ऑपरेशन करने का इरादा दर्दी को मारने के लिए नहीं होता...... उसको और ज्यादा निरोगी बनाने ..... निरामय देने का होता है......रावण को मारने की नहीं...... उसे तंदुरुस्त करने की योजना थी......
इंद्र ने अमृत की वृष्टि की .....अब इसमें हमको समझ में ना आए ऐसी बात है कि अमृत तो सार्वभौम .....सब पर गिरे.... राक्षस भी मरे थे ....बंदर भी मरे थे.... लेकिन राक्षस कोई जीवित नहीं हुआ..... बंदर सब जीवित हुए...... क्या अमृत भी पक्षपाती ?...ये तो गजब कहा जाए......
लेकिन ये राम का विचार है .....सालों पहले व्यास्पीठ ने कहा था कि राम केवल व्यक्ति नहीं.... विचार है .....
भगवान का विचार था कि दुष्टता का फिर से जन्म ना हो..... और जो शुद्धता मरनी नहीं चाहिए .....अमृत भेद करे ऐसा हो ही नहीं सकता......
पहले तो प्रश्न ये है कि दुनिया में अमृत है कि नहीं ?....मेरे लिए भी ये प्रश्न है ......पुस्तकों में अमृत है..... संस्कृत वांग्मय में श्रृंगार रस में अमृत कहाँ रहता है उसका भी वर्णन..... किसी की आंख में .... किसी के होंठ में .....पाताल में ....स्वर्ग में अमृत है ......
लेकिन इतने 73 सालों में .....अब तो 74 शुरू हो गया..... मुझे तो कहीं अमृत नजर नहीं आया .....
अमृत वो है जो एक बार दुष्टता का नाश हो फिर उसे जन्म ना लेने दे ......और मेरी और आपकी शुद्धता जो दब गई थी..... मूर्छित हो ......उसको मरने ना दे .......
इसलिए विनोबा जी कहते हैं कि आदमी को दोष कीर्तन के साथ गुण संकीर्तन भी करना चाहिए......
मेरे शुभ का संकीर्तन .....हमारे मुँह से हमारा बखान नहीं...... लेकिन हममें कुछ अच्छा हो तो हमें खुद को दाद देनी चाहिए..... दुनिया क्या दाद दे ......
एक बार हरि भजते भजते आँख में आंसू आए तब अपनी पीठ पर हाथ फेरो कि आज मुझे हरि को भजते हुए बहुत आनंद आया .....दाद खुद को दो.....
हमें किसी की तरफ द्वेष ना हो उस दिन खुद अपने आप को दाद दो ......कि लोग मेरे लिए कितना वैर रखते हैं..... फिर भी मुझे किसी के प्रति कटुता नहीं जगी......
ऐसा अगर हमारे जीवन में हुआ तो उसका आनंद हमें अकेले भी मनाना चाहिए...... भीड़ के साथ मनाया जाए उसका नाम उत्सव...... अकेले-अकेले मनाओ उसका नाम आनंद ......
उसमें कोई तबला ...पेटी... संगीत नहीं चाहिए....रोम रोम orchestra बनता है ......
ये "मन मोर बनी थनगाट करे"..... ये क्या है ?.....
पूरा अस्तित्व orchestra बनता है...... सब बजाते हैं.....
कई लोग कहते हैं बापू आप थकते नहीं .....कब तक कथा करोगे ?.....लेकिन मेरा .....मुझे कहना नहीं वरना आपको अच्छा नहीं लगेगा........ मुझे इसमें आनंद है.......
दूसरे के मुख से हम हमारा बखान ना करवाए..... बल्कि हममें कोई शुभ तत्व हो...... कोई ऐसा नहीं जिसमें शुभ तत्व ना हो..... हमारी आंख में मोतियाबिंद है.... हम देख नहीं सकते........
बापू के शब्द ~ मानस नवजीवन
जय सियाराम

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