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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (चित्र बंध, चौकी बंध. ५) =*
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*चौपइया*
*या पासैं आप रहै अबिनाशी देखि बिचारहु काया ॥*
*या काहु न जाना जगत भुलाना मोहे मोटी माया ॥*
*या मांटी माहैं हीरा निकस्या सतगुरु षोज लषाया ॥*
*या षाल लपेट्याँ सुंदर दीसै याही पासैं पाया ॥५॥*
यदि मनुष्य शुद्ध चित्त से विचार करेगा तो वह समझ जायगा कि वह अविनाशी भगवान् तो उसकी काया में ही एक ओर(उसके हृदय में) वास करते हैं । परन्तु इस तथ्य को साधारण मनुष्य नहीं जान पाये, क्योंकि उसका चित्त माया मोह में फँस कर सांसारिक मायाजाल में आबद्ध है ॥५॥
परन्तु जब वह सद्गुरु की शरण में गया तो उनने कृपापूर्वक बता दिया कि वह अनमोल हीरा तो उसी की काया के एक कोण(हृदय) में ही विराजमान है । यह काया, गौर त्वचा से आवृत होने के कारण दिखायी नहीं दे रहा था । गुरु की कृपा से वह उसको वहीं मिल गया ॥५॥
(क्रमशः)

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