सोमवार, 11 नवंबर 2019

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*समर्थ सो सेरी समझाइनैं, कर अणकर्ता होइ ।*
*घट घट व्यापक पूर सब, रहै निरंतर सोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *लज्जा* 
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सांभर में एक दिन एक ही समय सात महोत्सवों की योजना थी । सातों में दादूजी को निमन्त्रण था । कुछ लोगों की धारणा थी कि आज दादूजी के संतपने का पता लग जायेगा । देखेंगे कि वे सातों स्थानों पर एक समय में ही कैसे जाते हैं ? किन्तु भगवान् तो भक्त की लाज रखने के लिये पहले से ही कटिबद्ध हैं । 
महोत्सवों के दिन दादूजी तो ध्यानस्थ ही रहे और इधर जब कोई बुलाने आवे तब एक दादू आश्रम के द्वार पर स्थित मिले और उसे साथ महोत्सव में चले जायं । इसी तरह एक समय में ही सातों महोत्सवों में भगवान् रूप दादूजी ने ही गमन किया और दादूजी को इसका कोई पता नहीं, फिर यह बात संपूर्ण नगर में फैल गई । 
इस धटना से दादूजी से विरोध करने वाले मुसलमान आदि भी आश्चर्यचकित हुए तथा उन सबकी भी दादूजी पर श्रद्धा बढ गई । दादूजी ने भी ध्यान द्वारा यह ईश्वर की लीला जान कर भगवान् को धन्यवाद दिया ।
लज्जा सलज्ज की रखे, परमेश्वर तत्काल ।
दादू के हित सात तन, धारे दीनदयाल ॥१७८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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