🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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१०४ - सन्त सहाय रक्षा । राजमृगाँक ताल
पीव तैं अपने काज संवारै ।
कोई दुष्ट दीन को मारन, सोई गह तैं मारै ॥ टेक ॥
मेरु समान ताप तन व्यापै, सहजैं ही सो टारै ।
सँतन को सुखदाई माधो, बिन पावक फंद जारै ॥१॥
तुम तैं होइ सबै विधि समर्थ, आगम सबै विचारै ।
सँत उबार दुष्ट दुख दीन्हा, अँध कूप में डारै ॥२॥
ऐसा है शिर खसम हमारे, तुम जीते खल१ हारै ।
दादू सौं ऐसे निर्बहिये, प्रेम प्रीति पिव प्यारै ॥३॥
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भगवान् सदा सन्तों के सहायक होकर उनकी रक्षा करते हैं, यह कह रहे हैं - प्रभो ! आप अपने सँसार रक्षा सम्बन्धी कार्य अच्छी प्रकार ही करते रहते हैं । यदि कोई दुष्ट किसी प्राणी को मारने आता है तो आप उसे पकड़ कर मार देते हैं ।
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यदि मेरु पर्वत के समान भारी दु:ख भी सन्त पर आ जाये तो उसे भी आप अनायास ही हटा देते हैं । माधव ! आप सन्तों को सदा ही सुख देने वाले हैं । आपने बिना अग्नि भी सन्तों को फंसाने वाले फंदे जलाये हैं ।
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समर्थ ! आपसे सब प्रकार अच्छा ही होता है । आपके तो आगे आने वाले सभी कार्य पहले ही विचारे हुये रहते हैं । आपने सन्त की रक्षा की है और दुष्टों को अन्ध कूप में डालकर दु:ख दिया है ।
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हमारे शिर पर ऐसे समर्थ स्वामी हैं । फिर आप तो सदा ही जीतते रहे हैं और दुष्ट१ आप से हारते रहे हैं । हे मेरे प्यारे प्रभो ! मेरे प्रेम की ओर देखते हुये आप प्रीति पूर्वक मेरे साथ सदा ऐसे ही निभाना ।
(क्रमशः)

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