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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (चित्र बंध, कमल बंध. ३) =*
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*छप्पय*
*गगन धर्यौ जिनि अधर*
*टरत मरजाद न सागर ॥*
*निर्गुन ब्रह्म अपार कहै*
*कौ लिषि कै कागर ॥*
*टगत न धरनि सुमेर*
*हठ हि गन यक्ष भयंकर ॥*
*रिदय न पावत तौर*
*बिष्णु ब्रह्म पुनि शंकर ॥*
*स्वर्गादि मृत्यु पाताल तर*
*भजत तोहि सुर असुर नर ॥*
*रत भये जानि सुन्दर निडर*
*प्रगट हरि बिस्वभर ॥३॥*
जिन ब्रह्म ने आकाश की शून्य में रचना की, जिसकी बाँधी हुई मर्यादा को समुद्र भी मानता है उस अपार निर्गुण ब्रह्म का इदमित्थम्पुर्वक निर्वचन पत्रों पर करने का साहस कौन कर सकता है ।
जिसके द्वारा रचित सुमेरु पर्वत किसी के हिलाये हिल नहीं सकता, भले ही वह भयंकर से भयंकर बलवान् यक्ष या राक्षस ही क्यों न हो । विष्णु शिव एवं ब्रह्मा भी आज तक जिसकी यथार्थता न जान पाये । ऐसे सामर्थ्यशाली आपको स्वर्ग, मानव एवं पाताल लोक के सभी प्राणी श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं । अतः श्रीसुन्दरदासजी भी निर्भय होकर आपके स्मरण में लग गये हैं, क्योंकि आप विश्व में सर्वव्यापक हैं ॥३॥
(क्रमशः)

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