गुरुवार, 14 नवंबर 2019

स्मरण का अंग २२/२५

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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी 
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*नाम चित्त आवै सो लेय* 
*दादू सिरजनहार के, केते नाम अनन्त ।* 
*चित आवै सो लीजिये, यों साधु सुमरैं संत ॥२२॥* 
जैसे ब्रह्म के आकारों में कोई भेद नहीं है वैसे ही उसके नामों में भी कोई भेद नहीं है । अतः साधक अपनी रुचि के अनुसार किसी भी समय कोई नाम जप सकता है । 
भागवत में गर्गाचार्य कहते हैं - “हे यशोदे ! तुम्हारे पुत्र के बहुत से नाम और रूप हैं । ये सब गुण-कर्मानुसार ही कल्पित हैं । उन सबको मैं जानता हूँ, जो कि साधारण मनुष्य की बुद्धि के बाहर है ॥२२॥” 
*दादू जिन प्राण पिण्ड हमकौ दिया, अंतर सेवैं ताहि ।* 
*जे आवै ओसण सिर, सोई नांव संवाहि ॥२३॥* 
मैं तो उस सृष्टिकर्ता, सब के हृदय में विराजमान परब्रह्म परमात्मा का स्मरण करता हूँ, जिसने मन, प्राण, इन्द्रियाँ, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी आदि इस समस्त विश्व को धारण कर रखा है । तुम भी ऐसा ही करो । अथवा-समय पर जो नाम तुम्हारी बुद्धि में आवे उसी नाम को जपो । तुम्हें उसके नाम के विषय में कोई विवाद नहीं करना चाहिये ॥२३॥ 
*चेतावनी* 
*दादू ऐसा कौण अभागिया, कछु दिढावै और ।* 
*नाम बिना पग धरन को, कहो कहाँ है ठौर ॥२४॥* 
*सुमिरण नाम महिमा* 
*दादू निमिष न न्यारा कीजिये, अंतर थैं उर नाम ।* 
*कोटि पतित पावन भये, केवल कहतां राम ॥२५॥* 
इन दोनों साखीवचनों से आचार्य शिष्य की हरिनाम में दृढ़निष्ठा करवा रहे हैं । जब कि शास्त्रों में यज्ञ, व्रत आदि साधनों की अपेक्षा नाम-साधना सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित की गई है । तो फिर कौन गुरु अपने शिष्य को अन्य साधनाओं में लगाना चाहेगा ! यदि कोई ऐसा करता है तो वह ‘गुरु’ नहीं है । और जो शिष्य अपने आप को अन्य साधनाओं में लगाता है वह ‘शिष्य’ नहीं है । ये दोनों ही मन्दभागी है । क्योंकि नाम के विना संसार में कुछ वस्तु है ही नहीं । केवल नाम स्मरण से ही कोटि-कोटि पतित-पुरुष पावन हो गये हैं । अतः सभी को भगवान् के नाम का अहर्निश चिन्तन करना चाहिये; क्योंकि नाम के विना कोई भगवद्धाम में प्रवेश का अधिकारी ही नहीं बनता तो फिर मुक्ति कैसी ! हरिनाममहिमाष्टक में लिखा है- 
“हरिनाम लेने से डूबते हुए गजेन्द्र का उद्धार हो गया, द्रौपदी का वस्त्र अनन्त हो गया, नरसी मेहता के समग्र कार्य, विना उद्योग के ही, सम्पन्न हो गये ।” 
“जिस हरि के नाम कीर्तन से बह्महत्या, पितृहत्या, गोहत्या, मातृहत्या, आचार्यहत्या एवं गुरु हत्या जैसे बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा कुत्ते का मांस खाने वाला चाण्डाल आदि भी जिसके कीर्तन से शुद्ध हो जाते हैं । उस कल्याणकारी भगवन्नाम जप को छोड़कर कौन अविवेकी दूसरे साधनों में लगेगा ! ॥२४-२५॥”
(क्रमशः)

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