शनिवार, 23 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*खंड खंड निज ना भया, इकलस एकै नूर ।*
*ज्यों था त्यों ही तेज है, ज्योति रही भरपूर ॥*
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कृष्ण ने कहा है कि मैंने ही समय के पहले, सृष्टि के पूर्व में, आदि में सूर्य को कही थी यही बात। फिर सूर्य ने मनु को कही, मनु ने इक्ष्वाकु को कही और ऐसे अनंत-अनंत लोगों ने अनंत-अनंत लोगों से कही। स्वभावतः, अर्जुन के मन में प्रश्न उठे, आश्चर्य नहीं है। वह पूछता है, आपका जन्म तो अभी हुआ; सूर्य का जन्म तो बहुत पहले हुआ। आपने कैसे कही होगी सूर्य से यह बात?
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श्री कृष्ण खींचने का प्रयास करते हैं अर्जुन को, कि छलांग ले। अर्जुन सिकुड़कर अपनी खाई में समा जाता है। वह जो प्रश्न उठाता है, वे सब सिकुड़ने वाले हैं। वह कहता है, मैं कैसे भरोसा करूं? अब यह बड़े आश्चर्य की बात है। यह ध्यान रहे कि जो व्यक्ति पूछता है, मैं कैसे भरोसा करूं, उसे भरोसा करना बहुत कठिन है। या तो भरोसा होता है या नहीं होता है। कैसे भरोसा बहुत कठिन है।
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जो व्यक्ति कहता है, कैसे भरोसा करूं? दूसरी बात के उत्तर में भी वह कहेगा, कैसे भरोसा करूं? यह कैसे भरोसे का प्रश्न इसका कोई अंत नहीं है। जो बात श्री कृष्ण ने कही है, अर्जुन उसके संबंध में प्रश्न नहीं उठा रहा। वह सत्य क्या है, जो सूर्य से कहा था आपने, वह यह नहीं पूछता। उसका प्रश्न उस व्यवस्था के लिए है, जो श्री कृष्ण ने खड़ा किया। वह कहता है कि कैसे मानूं?
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श्री कृष्ण कहते हैं, मैं सखा, मित्र, प्रिय ! अर्जुन जो सवाल उठाता है, वह बहुत प्रेमपूर्ण नहीं है। क्योंकि प्रेम भरोसा है। प्रेम भरोसा है, निष्प्रश्न भरोसा। जहां सवाल है भरोसे पर, कि क्यों? वहां प्रेम नहीं है। वहां प्रेम का अभाव है। मित्रों एक बात आप को पता हैं कि जब भी जीवन में प्रेम की घड़ी होती है, तब हम क्यों, कैसे, क्या, सब भूल जाते हैं। प्रेम एकदम भरोसा ले आता है। और यदि प्रेम भरोसा न ला पाए, तो फिर प्रेम कुछ भी नहीं ला सकता। और यदि प्रेम भरोसा न ला पाए, तो प्रेम है ही नहीं।
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अर्जुन पूछता है, मानने योग्य नहीं लगती यह बात ! यह भी समझ लेने जैसा आवश्यक है कि श्री कृष्ण ने क्या कहा था? श्री कृष्ण जब कह रहे हैं कि यही मैंने कहा था, तो यह श्री कृष्ण भी जानते हैं कि यह शरीर तो अभी पैदा हुआ। यह अर्जुन ही पूछे, तब कृष्ण जानेंगे, ऐसा नहीं है। यह कृष्ण भी जानते हैं कि यह शरीर तो अभी पैदा हुआ है। और यदि इतना भी कृष्ण नहीं जानते, तो बाकी और कुछ पूछना उनसे व्यर्थ है।
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अर्जुन ठीक हमारे जैसा सोचने वाला व्यक्ति है, ठीक तर्क से। वह कहता है, आप? स्वभावतः, जो सामने तस्वीर दिखाई पड़ रही है श्री कृष्ण की, वह सोचता है, यही व्यक्ति कहता है? तो इसकी तो जन्म तारीख पता है। सूर्य की तो जन्म तारीख कुछ पता नहीं है। और यह आदमी जिस दिन पैदा हुआ, उस दिन भी सूरज निकला था। उसके पहले भी निकलता रहा है।
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श्री कृष्ण जिस "मेरे" की बात कर रहे हैं, वह इस शरीर की बात नहीं है। वह उस आत्मा की बात है, जो न जाने कितने शरीर ले चुकी और छोड़ चुकी, वस्त्रों की भांति। न जाने कितने शरीर जरा-जीर्ण हुए, पुराने पड़े और छूटे, वह उस आत्मा की बात है, जो मूलतः परमात्मा से एक है। वह सूर्य के पहले भी थी। सूर्य बुझ जाएगा, उसके बाद भी होगी।
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जहां तक शरीरों का संबंध है, यह सूर्य हमारे जैसे न मालूम कितने करोड़ों शरीरों को बुझा देगा और नहीं बुझेगा। परन्तु जहां तक भीतर के तत्व का संबंध है, ऐसे सूरज जैसे करोड़ों सूरज बुझ जाएंगे और वह भीतर का तत्व नहीं बुझेगा।
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परन्तु उसका अर्जुन को कोई विचार नहीं है, इसलिए वह प्रश्न उठाता है। उसका प्रश्न, अर्जुन की तरफ से संगत, कृष्ण की तरफ से बिलकुल असंगत। अर्जुन की तरफ से बिलकुल तर्कयुक्त, कृष्ण की तरफ से बिलकुल अंधा। अर्जुन की तरफ से बड़ा सार्थक, कृष्ण की तरफ से अत्यंत मूढ़तापूर्ण। परन्तु अर्जुन क्या कर सकता है ! कृष्ण की तरफ से होगा मूढ़तापूर्ण, उसकी तरफ से तो बहुत तर्कपूर्ण है। यद्यपि अंततः सभी तर्क अत्यंत मूर्खतापूर्ण सिद्ध होते हैं, परन्तु जब तक वे ऊंचाइयां नहीं मिलीं, तब तक अर्जुन की भी मजबूरी है। और उसका प्रश्न उसकी तरफ से बिलकुल संगत है।

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