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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (चित्र बंध, बृक्ष बंध. ९) =*
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*मनहर*
*एक ही बिटप विश्व ज्यौं कौ त्यौं ही देखियत,*
*अति ही सघन ताके पत्र फल फूल है ।*
*आगिले झरत पात नये नये होत जात,*
*अैसौ याही तरु कौ अनादि काल मूल है ॥*
*दश च्यारि लोक लौं प्रसरि जहां तहां रह्यौ,*
*अध पुनि ऊरध सूखिम अरु थूल है ।*
*कोऊ तौ कहत सत्य कोऊ तौ कहै असत्य,*
*सुन्दर सकल मन ही कौ भ्रम भूल है ॥११॥*
यह संसार एक ही विश्ववृक्ष है । इसके पत्र, पुष्प एवं फल – सभी साधन हैं । इसके पहले(पुराने) पत्ते गिरते जाते हैं, नये नये आते जाते हैं । इस प्रकार, इस वृक्ष का मूल अनादि काल माना जाता है ॥
इसका जहाँ का तहाँ चौदह लोकों में विस्तार है । यह ऊपर भी है, नीचे भी है, सूक्ष्म और स्थूल भी है ॥
कोई विद्वान् इसे सत्य(यथार्थ) कहता है, कोई असत्य(अयथार्थ) । महात्मा कहते हैं – यह समस्त मन वस्तुतः मन की भ्रान्ति है, भूल है ॥११॥
(क्रमशः)
अभुत भाव बदु सरल पद. आप को नमस्कार
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