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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (कंकन बंध. १४) =*
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*डुमिला*
*गुरु ग्यांन गहै अति होइ सुखी,*
*मन मोह तजै सब काज सरै ।*
*धुर ध्यांन रहै पति खोइ मुखी,*
*रन लोह बजै तब लाज परै ॥*
*सुरतान उहै हति दोइ रुखी,*
*तन छोह सजै अब आज मरै ।*
*पुरथान लहै मति धोइ दुखी,*
*जन वोह रजै जब राज करै ॥२४॥*
गुरु ज्ञान ग्रहण करने से ही नित्य सुख प्राप्त होगा, मोह ममता के त्याग से ही आध्यात्मिक कार्य पूर्ण हो सकते हैं । सांसारिक प्रतिष्ठा को भूलने से ही हरिभजन में ध्यान लग सकता है । देह गेहादि के ममत्व त्यागने पर ही दिग्विजयी हो सकता है । गुरुज्ञान से जिसकी बुद्धि शुद्ध हो गयी है वही मोक्ष का अधिकारी है । परम कृपालु प्रभु की कृपा हो जाय तो वह अक्षय राज्य करने में समर्थ हो जाता है ।
॥इति चित्रकाव्य के बंध॥६॥
(क्रमशः)
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