🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू सोई हमारा सांइयां, जे सबका पूरणहार ।*
*दादू जीवन मरण का, जाके हाथ विचार ॥*
*करणहार कर्त्ता पुरुष, हमको कैसी चिंत ।*
*सब काहू की करत है, सो दादू का दादू मिंत ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
==============================
श्री कृष्ण कहते हैं, तू सब कुछ मुझमें समर्पित करके, आशा और ममता से मुक्त होकर, विगतज्वर होकर, सब तरह के बुखारों से ऊपर उठकर, तू कर्म कर।
.
इसमें दो तीन बातें समझने की हैं। एक, सब मुझमें समर्पित करके, यहां श्री कृष्ण जब भी कहें, जब भी कहते हैं, सब मुझमें समर्पित करके, तो यह श्री कृष्ण नाम के व्यक्ति के लिए कही गई बातें नहीं हैं। जब भी श्री कृष्ण कहते हैं, सब मुझमें समर्पित करके, तो यहां वे मुझसे, मैं से समग्र परमात्मा का ही अर्थ लेते हैं।
.
यहां व्यक्ति कृष्ण से कोई प्रयोजन नहीं है। वे व्यक्ति हैं भी नहीं। क्योंकि जिसने भी जान लिया कि मेरे पास कोई अहंकार नहीं है, वह व्यक्ति नहीं परमात्मा ही है। जिसने भी जान लिया, मैं बूंद नहीं सागर हूं वह परमात्मा ही है। यहां जब श्री कृष्ण कहते हैं, सब मुझमें समर्पित करके, सब कर्म भी, कर्म का फल भी, कर्म की प्रेरणा भी, कर्म का परिणाम भी सब, मुझमें समर्पित करके तू युद्ध में उतर। कठिन है बहुत। समर्पण से ज्यादा कठिन सम्भवतय और कुछ भी नहीं है। यह समर्पण, संभव हो सके, इसलिए वे दो बातें और कहते हैं।
.
हम सब ज्वर से भरे हैं। बहुत तरह के ज्वर हैं। क्रोध का ज्वर है, काम का ज्वर है, लोभ का ज्वर है। इनको ज्वर क्यों कह रहे हैं, इनको ज्वर क्यों कहते हैं श्री कृष्ण? वास्तव में जिस वस्तु से भी शरीर का उत्ताप बढ़ जाए, वे सभी ज्वर हैं। चिकित्सा शास्त्र के विचार से भी। क्रोध में भी शरीर का उत्ताप बढ़ जाता है। क्रोध में भी हमारा रक्तचाप बढ़ जाता है। क्रोध में हृदय तेजी से धड़कता है, श्वास जोर से चलती है, शरीर उत्तप्त होकर गर्म हो जाता है। कभी-कभी तो क्रोध में मृत्यु भी घटित होती है। यदि कोई व्यक्ति पूरी तरह क्रोधित हो जाए, तो जलकर राख हो जा सकता है, मर ही सकता है।
.
पूरे तो हम नहीं मरते, क्योंकि पूरा हम कभी क्रोध नहीं करते, परन्तु थोड़ा तो मरते ही हैं, इंच-इंच मरते हैं। परन्तु जब भी हम क्रोध करते हैं, तभी उम्र क्षीण होती है, तत्सण क्षीण होती है। कुछ हमारे भीतर जल जाता है और सूख जाता है। जीवन की कोई लहर मर जाती और जीवन की कोई हरियाली सूख जाती है। क्रोध करें और देखें कि ज्वर है क्रोध। श्री कृष्ण यहां बड़ी ही वैज्ञानिक भाषा का उपयोग कर रहे हैं।
.
*श्री कृष्ण जब कह रहे हैं कि ज्वर से मुक्त हुए बिना कोई समर्पण नहीं कर सकता। क्यों? विगतज्वर ही समर्पण कर सकता है, जिसके जीवन में कोई ज्वर नहीं रहा। अब यह बड़े आश्चर्य की बात है, यदि जीवन में ज्वर न रहे, तो अहंकार नहीं रहता, क्योंकि अहंकार के लिए ज्वर भोजन है। जितना जीवन में क्रोध हो, लोभ हो, काम हो, उतना ही अहंकार होता है। और अहंकार समर्पण में बाधा है। अहंकार ही एकमात्र बाधा है, जो समर्पण नहीं करने देती।*
श्री कृष्ण अवश्य इस क्षण में एक द्वार बन गए होंगे। नहीं तो अर्जुन भी प्रश्न उठाता, उठाता ही। अर्जुन छोटा प्रश्न उठाने वाला नहीं है। अर्जुन ने अनुभव किया होगा कि जो कह रहा है, वह मेरा सारथी नहीं है, जो कह रहा है, वह मेरा सखा नहीं है, जो कह रहा है, वह स्वयं परमात्मा है। ऐसी प्रतीति में यदि अर्जुन को कठिनाई लगी होगी, तो वह श्री कृष्ण के भगवान होने की नहीं, वह अपने समर्पण के सामर्थ्य न होने की कठिनाई लगी होगी। वही लगी है।
DaduRam SatyaRam 🙏😌
जवाब देंहटाएं