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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*स्मरण विनती*
*दादू पीवै एक रस, बिसरि जाइ सब और ।*
*अविगत यहु गति कीजिये, मन राखो इहि ठौर ॥९२॥*
*आत्म चेतन कीजिए, प्रेम रस पीवै ।*
*दादू भूलै देह गुण, ऐसैं जन जीवै ॥९३॥*
हे वाणी के अविषय परमात्मन् ! उच्छृङ्खल प्रवृत्ति वाले मेरे इस शरीर समुदाय और मन को संयत कर दीजिये । मेरे हृदय में आपका चिन्तन प्रतिदिन बढ़ता रहे और मैं उसका रसास्वादन करता रहूँ । मेरा मन आपका ही स्मरण करे । ऐसी कृपा कीजिये । क्योंकि भक्तों का जीवन ऐसा ही होता है ।
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*स्मरण नाम अगाधता*
*कहि कहि केते थाके दादू, सुणि सुणि कहु क्या लेइ ।*
*लौंण मिलै गलि पाणियां, ता सम चित यों देइ ॥९४॥*
हे साधक ! कितने ही विद्वानों ने नाना प्रकार के प्रवचनों द्वारा उस ब्रह्म तत्त्व को शास्त्रप्रमाणों से कहा, किन्तु उनको भी वह नहीं मिला । वह तो जल में नमक की तरह अपने मन को ब्रह्म में लीन करने पर ही मिलता है । अतः तुम भी नाम स्मरण द्वारा अपने मन को प्रभु में लीन कर दो, तभी वह तत्त्व प्राप्त होगा, अन्यथा नहीं ॥९४॥
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*दादू हरि रस पीवतां, रती विलम्ब न लाइ ।*
*बारम्बार संभालिये, मति वै बीसरि जाइ ॥९५॥*
शुभ कर्म में क्षणभर भी विलम्ब नहीं करना चाहिये । क्योंकि यह शरीर नाशवान् है । हरिस्मरण तो सर्वश्रेष्ठ कार्य है । इस कार्य में क्षणभर का भी विलम्ब सह्य नहीं है । अतः शरीर की नश्वरता को जानकर हरिस्मरण में जल्दी से जल्दी लग जाना चाहिये । हरि स्मरण में प्रतिबन्धक भी बहुत हैं । इसलिये सावाहित मन से हरि को भजो कभी भी भूलो मत । लिखा है-
“काम-क्रोध आदि को थोड़ा भी मौका नहीं देना चाहिये । किन्तु सुषुप्ति से लेकर मरण पर्यन्त आत्मचिन्तन में समय लगाना चाहिये ।”
“कल के कार्य को आज ही कर लो । जो दोपहर को कार्य करना हो उसे प्रातः ही कर लो । क्योंकि मृत्यु किसी की प्रतीक्षा नहीं करती कि इसने कार्य पूर्ण किया या नहीं ! ॥९५॥”
(क्रमशः)

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