शनिवार, 2 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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९० - परिचय । पँचमताल
नीको धन हरि कर मैं जान्यौं, मेरे अखई१ ओही२ ।
आगे पीछे सोई है रे, और न दूजा कोई ॥टेक॥
कबहुं न छाडूँ संग पिया को, हरि के दर्शन मोही ।
भाग हमारे जो हौं३ पाऊं, शरणैं आयो तोही ॥१॥
आनंद भयो सखी जिय मेरे, चरण कमल को जोई४ ।
दादू हरि को बावरो३, बहुरि वियोग न होई ॥२॥
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प्रभु साक्षात्कार का परिचय दे रहे हैं, मैँने विचार द्वारा निश्चय करके राम - धन को ही श्रेष्ठ धन समझा है । मेरे लिये वही२ अक्षय१ धन है । मेरे आगे पीछे रहने वाला सँबँधी भी वह राम ही है, और दूसरा कोई नहीं है । 
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यदि मेरे भाग्यवश मैं३ प्रभु को प्राप्त कर पाऊँगा, उसके दर्शन मुझे हो जायेंगे तब तो मैं उस प्रियतम का साथ कभी भी न छोडूँगा । प्रभो ! मैं आपकी शरण आया हूं, कृपा करके दर्शन दो । 
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हे सँत - सखी ! अब तो प्रभु के चरण - कमलों को देखकर४ मेरे हृदय में परमानन्द हो रहा है तथा मैं हरि का दीवाना३ हो रहा हूं । अत: अब पुन: वियोग न होगा ।
(क्रमशः)

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