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*दादू एकै आत्मा, साहिब है सब मांहि ।**साहिब के नाते मिले, भेष पंथ के नांहि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*विवेक समता का अंग ८९*
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षट् दर्शन सरिता बहै, देखत दह१ दिशि जाँहिं ।
सांई समुद्र सन्मुखी, उभय उभय अंग२ माँहिं ॥१७॥
जैसे नदियां देखते देखते दशों१ दिशाओं में घूमती हुई समुद्र के सम्मुख जाती हैं, वैसे ही नाथ, जंगम, सेवड़े , बौद्ध, सन्यासी, शेष, ये छ: प्रकार के भेषधारी भी अपने अपने मतों का प्रदर्शन करते हुये निर्गुण राम के सम्मुख ही जाते हैं । इस प्रकार नदियाँ और षट् दर्शन दोनों ही समुद्र और निर्गुण राम दोनों के स्वरूप२ में समाकर सम हो जाते हैं ।
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नारायण अरु नगर को, रज्जब पंथ अनेक ।
कोई आओ कहीं दिशि, आगे अस्थल एक ॥१८॥
नगर को जाने के अनेक मार्ग होते हैं, कोई किसी भी दिशा से आये आगे सभी मार्ग एक नगर रूप स्थान को ही जायेंगे, वैसे ही नारायण को प्राप्त करने के अनेक साधन हैं, कोई भी साधन का आश्रय ले वही नारायण को मिला देगा ।
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हय१ गय२ प्याद३ हुं पंथ बहु, रथ बैठ्यों मग एक ।
रज्जब नरहरि४ नगर निज, पहुंचे प्राणी अनेक ॥१९॥
हाथी१, घोड़े २ और पैदल३ चलने वालों के मार्ग तो बहुत हैं, किन्तु रथ पर बैठने से तो एक ही मार्ग रहेगा, उक्त सब भी रथ के मार्ग में ही आ जायेंगे । इस प्रकार अपने नगर को अनेक प्राणी पहुंचते हैं, वैसे ही अपने प्रभु४ को प्राप्त करने के लिये अनेक साधनों का आश्रय लेते हैं किन्तु विवेक समता रूप मार्ग तो एक ही रहेगा, अन्य सभी इसी में आ मिलेंगे ।
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व्यापक वैसी१ बोलता, पाणी वैसी२ पिंड ।
रज्जब बैस३ पिछाणिये, इन बैसों४ ब्रह्मांड ॥२०॥
विवेक समता पूर्वक बोलने वाले संत जैसा१ व्यापक वाणी बोलने से सुनने वालों को जल में शरीर निमग्न होने जैसी२ शीतल लगती है । संतों के पास बैठकर३ विवेक समता को पहचानो और इन संतों के कथानुसार ब्रह्माण्ड में निर्द्धन्द्धतापूर्वक स्थित४ रहो ।
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हिन्दू तुरक उदय जल बूंदा, कासौं कहिये ब्राह्मण शूदा ।
रज्जब समता ज्ञान विचारा, पंचतत्त्व का सकल पसारा ॥२१॥
हिन्दू-मुसलमान दोनों ही वीर्य रूप जल की बिन्दू से उत्पन्न हुये हैं, तब किसको ब्राह्मण और किसको शूद्र कहा जाय । समानतापूर्वक ज्ञान वा विचार करें तब तो यह सभी विस्तार पंच-तत्त्वों का है, अत: सभी समान हैं ।
(क्रमशः)

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