सोमवार, 25 नवंबर 2019

= १०९ =

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
१०९ - परिचय । भँगताल
ऐंन१ एक सो मीठा लागै,
ज्योति स्वरूपी ठाढ़ा आगै॥टेक॥
झिलमिल करणा, अजरा जरणा,
नीझर झरणा, तहं मन धरणा ॥१॥
निज निरधारँ, निर्मल सारँ,
तेज अपारँ, प्राण अधारँ ॥२॥
अगहा गहणा, अकहा कहणा,
अलहा लहणा, तहं मिल रहणा॥३॥
निरसंध नूरँ, सब भरपूरँ,
सदा हजूरँ, दादू सूरँ ॥४॥
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साक्षात्कार किये स्वरूप का परिचय दे रहे हैं - जो यथार्थ१ ज्योति - स्वरूप अद्वैत ब्रह्म हमारे ज्ञान - विचार नेत्रों के सामने खड़े हैं, वे ही हमें अति प्रिय लगते हैं ।
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जिनका प्रकाश झिलमिलाहट कर रहा है; जो अन्य से न पचने वाले सँसार को पचाने वाले हैं; परमानन्द - रस के गिराने वाले निझदर हैं; निज - स्वरूप हैं;
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निराधार, निर्मल , विश्व के सार, प्राणाधार, अपार तेज - स्वरूप हैं; उन्हीं परब्रह्म के स्वरूप में हमें मन रखना है ।
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जो ग्रहण करने में नहीं आते, उन्हीं ब्रह्म को व्यापक रूप से ग्रहण करना; जिनका पूर्ण रूप से कथन नहीं होता, उन्हीं ब्रह्म के विषय में कहना; जो अन्य रूप से प्राप्त नहीं होते, उन्हीं ब्रह्म को स्वस्वरूप रूप से प्राप्त करना है ।
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जिनका स्वरूप सँधि - रहित सारे विश्व में परिपूर्ण है, सूर्यवत् सदा ज्ञान - विचार - नेत्रों से उसमें रहना है ।
(क्रमशः) 

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