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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*गुरु पहली मन सौं कहै, पीछे नैन की सैन ।*
*दादू सिष समझै नहीं, कहि समझावै बैन ॥*
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साभार ~ oshohindipravachan.wordpress.com
*सत्य न तो नया है, न पुराना। जो नया है, वह पुराना हो जाता है। जो पुराना है, वह कभी नया था। जो नए से पुराना होता है, वह जन्म से मृत्यु की ओर जाता है। सत्य का न कोई जन्म है, न कोई मृत्यु है। इसलिए सत्य न नया हो सकता है, न पुराना हो सकता है।*
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*सनातन का अर्थ, सत्य समय के बाहर है। वस्तुतः समय के भीतर जो भी है, वह नया भी होगा और पुराना भी होगा। समय के भीतर जो है, उसका जन्म भी होगा और मृत्यु भी; जवान भी होगा और बूढ़ा भी होगा। कभी स्वस्थ भी होगा और कभी अस्वस्थ भी होगा। समय के भीतर जो है, वह परिवर्तनमय होगा; समय के बाहर जो है, वही अपरिवर्तित हो सकता है।*
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श्री कृष्ण ने इस श्लोक में बहुत थोड़ी-सी बात में बहुत-सी बात कही है। एक तो उन्होंने यह कहा कि यह जो मैं तुझसे कहता हूं अर्जुन, वही मैंने सूर्य से भी कहा था, समय के प्रारंभ में, आदि में। इसको थोड़ा गहराई से समझने का प्रयास करते हैं।
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*समय के प्रारंभ का क्या अर्थ हो सकता है? सत्य तो यह है कि जहां भी प्रारंभ होगा, वहां समय पहले से ही विधमान हो जाएगा। सब प्रारंभ समय के भीतर होते हैं, समय के बाहर कोई प्रारंभ नहीं हो सकता, क्योंकि सब अंत समय के भीतर होते हैं। श्री कृष्ण जब कहते हैं, समय के प्रारंभ में, तो उसका अर्थ ही यही होता है, समय के बाहर। समय के भीतर यदि कोई प्रारंभ होगा, तो वह शाश्वत सत्य की घोषणा नहीं कर सकता है।*
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जब समय नहीं था, तब मैंने सूर्य को भी यही कहा है। इस बात को भी थोड़ा समझ लेना आवश्यक है कि सूर्य को भी यही कहा है, इस प्रतीक का क्या अर्थ हो सकता है? *जो भी अध्यात्म की गहराइयों में उतरे हैं, उन सबका एक सुनिश्चित अनुभव है, और वह यह कि अध्यात्म की अंतिम गहराई में प्रकाश ही शेष रह जाता है, और सब खो जाता है। जब व्यक्ति अध्यात्म में शून्य होता है, अहंकार विलीन होता है, तो प्रकाश ही रह जाता है, और सब खो जाता है। व्यक्ति जब अध्यात्म की गहराई में उतरता है, तो वह वहीं पहुंच जाता है, जब समय के पहले सब कुछ था। गहरे अनुभव, प्रथम और अंतिम, समान होते हैं।*
श्री कृष्ण जब यह कहते हैं कि, यही मैंने सूर्य को कहा था, तो वे यह कहते हैं, यही मैंने प्रकाश की प्रथम घटना को कहा था। *इस जगत के प्रारंभ की प्रथम घटना प्रकाश है और इस जगत के अंत की अंतिम घटना भी प्रकाश है। व्यक्ति के आध्यात्मिक जन्म का भी प्रारंभ प्रकाश है और आध्यात्मिक समारोप भी प्रकाश है।* श्री कृष्ण यहां प्रकाश को सूर्य कहते हैं। सूर्य को कहा था सबसे पहले, क्योंकि सबसे पहले प्रकाश था; और फिर जो भी जन्मा है, वह प्रकाश से ही जन्मा है। फिर प्रकाश के पुत्र को कहा था, फिर उसके पुत्र को कहा था।
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श्री कृष्ण सूर्य की जगत की पहली घटना की, फिर मनु की, इक्ष्वाकु की, इनकी बात कर रहे हैं। उन्हें हुए अन्नंत वर्ष हुए। श्री कृष्ण तो अभी हुए हैं। अभी अर्जुन के सामने खड़े हैं। जिस कृष्ण की यह बात है, वह किसी और कृष्ण की बात है। *हमारे जीवन की एक ऐसी घडी हैं, जब व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़ देता, तो उसके भीतर से परमात्मा ही बोलना शुरू हो जाता है। जैसे ही मैं की आवाज बंद होती है, वैसे ही परमात्मा की आवाज शुरू हो जाती है। जैसे ही मैं मिटता हूं, वैसे ही परमात्मा ही शेष रह जाता है।*
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यहां जब श्री कृष्ण कहते हैं, मैंने ही कहा था सूर्य से, तो यहां वे व्यक्ति की तरह नहीं बोलते, समष्टि की भांति बोलते हैं। और श्री कृष्ण के व्यक्तित्व में इस बात को ठीक से समझ लेना आवश्यक है कि बहुत क्षणों में वे अर्जुन के मित्र की भांति बोलते हैं, जो कि समय के भीतर घटी हुई एक घटना है। और बहुत क्षणों में वे परमात्मा की तरह बोलते हैं, जो समय के बाहर घटी घटना है।
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श्री कृष्ण हर समय दो तलों पर अविस्थत रहते हैं, इसलिए श्री कृष्ण के बहुत-से वक्तव्य समय के भीतर हैं, और श्री कृष्ण के बहुत-से वक्तव्य समय के बाहर हैं। जो वक्तव्य समय के बाहर हैं, वहां श्री कृष्ण सीधे परमात्मा की तरह बोल रहे हैं। और जो वक्तव्य समय के भीतर हैं, वहां वे अर्जुन के सारथी की तरह बोल रहे हैं। इसलिए जब वे अर्जुन से कहते हैं, हे महाबाहो ! तब वे अर्जुन के मित्र की तरह बोल रहे हैं। परन्तु जब वे अर्जुन से कहते हैं, *सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।* सब छोड़, तू मेरी शरण में आ, तब वे अर्जुन के सारथी की तरह नहीं बोल रहे हैं। जब श्रीकृष्ण कहते हैं, सब छोड़कर मेरी शरण आ जा, तब इस मेरी शरण से श्री कृष्ण परमात्मा ही हैँ।
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जिस दिन, श्री कृष्ण कहते हैं, मैंने सूर्य को कहा था; सत्य जहां था, वहीं है। जिस दिन सूर्य ने अपने बेटे मनु को कहा; सत्य जहां था, वही है। जिस दिन मनु ने अपने बेटे इक्ष्वाकु को कहा; सत्य जहां था, वही है। और श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं, तब भी सत्य वही है। और यदि मैं आपसे कहूं, तो भी सत्य वही है। कल हम भी न होंगे, फिर कोई कहेगा, और सत्य वही होगा। हम आएंगे और जाएंगे, बदलेंगे, समाप्त होंगे, नए होंगे, विदा होंगे, सत्य अपने स्थान पर ही होगा ।
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