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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (चित्र बंध, छत्र बंध. १) =*
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*(१).अथ छत्र बंध*
*छप्पय*
*सुनहुं अंक की आदि*
*दशाइक बिधि सुत केते ।*
*रस भोजन पुनि जान*
*भनौ यौगांगहि जेते ॥*
*जलज नाभि दल बूझि*
*हुई कै कंचन बांनी ।*
*निरषि भुवन पुनि कहौ*
*रंभ वय किती बषांनी ॥*
*जग मांहि जु प्रगट पुरान कै*
*नंदन नख कर पग गनं ॥*
*सब साधन कै सिर छत्र यह*
*‘सुन्दर’ भजहु निरंजन ॥१॥*
श्रीसुन्दरदासजी महाराज के करकमलों से परम्परा से प्राप्त गुटका पुस्तक में चौदह(१४) चित्रकाव्य प्राप्त हुए थे । इनमें सात के छन्द भी चित्रों में दिये हैं, अतः ७ के छन्द भी पृथक दिये हैं । वे ये हैं ~
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*१. अथ छत्रबन्ध*
[ यह छप्पय अन्तर्लापिका है । पदार्धों के प्रथम शब्दों के प्रथम अक्षरों से ‘सुंदर भजहु निरंजन’ यह पदार्ध निकलता है । जो छन्द के अन्त में होने से अन्तर्लापिका हुई । इस की व्याख्या यह है ~
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*अंकों की आदि* शून्य(०) है, अथवा विधिसुत ४ हैं ~ सनक, सनन्दन, सनत्कुमार और सनातन । इनकी गणना भी ४ है । इन चारों की दशा सर्वथा बाल्य अवस्था बनी रहती है, ये अमर हैं । ब्रह्मा के ये मानसपुत्र हैं । ये सृष्टि के आदि में उत्पन्न हुए थे ।
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*रस भोजन* ~ भोजन के पदार्थों में छह प्रकार के रस होते हैं ~ मधुर, खट्टा, खारा, चरचरा, कटु एवं कसैला ।
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*योग के अंग* आठ हैं ~ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा एवं समाधि ।
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*जलज नाभिदल* ~ ब्रह्मा के कमल की दश पंखुड़ियाँ होती हैं । उत्तम *सोने* की ।
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बारह *बानी* कहि जाती है, जैसे यह सोना बारह बानी का है ।
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*भुवन* चौदह होते हैं ~ सात स्वर्ग एवं सात पाताल ।(*सात स्वर्ग* ये हैं ~ भूलोक भुवलोक, स्वर्लोक, महलोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक । *सात पाताल* ये हैं ~ तल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल एवं पाताल) ।
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*रम्भावय* ~ रम्मा(इन्द्र की अप्सरा, सदा १६ वर्ष की आयु वाली रहती है।)
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*पुराण* ~ संख्या से अट्ठारह प्रसिद्ध हैं(जैसे ~ पद्म, विष्णु, वराह, वामन, शिव, अग्नि, ब्रह्म, ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, भविष्य, भगवत, मार्कंडेय, मत्स्य, नारद, स्कंद, कूर्म, लिंग एवं गरुड) ।
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*नंदन* ~ पुत्र जन्म के समय इसके हाथ पैरों के बीस नख होते हैं । संसार में ज्ञान, कर्म एवं भक्ति के साधनों में श्रेष्ठ साधन निरंजन(निराकार) का भजन ही श्रेष्ठ(शीर्षस्थ) है, उसका भजन करना चाहिये ।
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*सब साधन* का दूसरा अर्थ यही हो सकता है ~ सभी साधना श्रेष्ठ हैं, परन्तु निरंजन का भजन सर्वश्रेष्ठ है । ]
(क्रमशः)
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