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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (बृक्ष बंध. १०/३) =*
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*इन चौबीस हु तत्व कौ, बृक्ष अनूपम एक ॥*
*सुख दुख ताके फल भये, नाना भाँति अनेक ॥१८॥*
विविध प्रकार के सुख दुःख इसके फलरूप में गृहीत होते हैं ॥१८॥
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*तामें दो पक्ष बसहिं, सदा समीप रहाँइ ।*
*एक भषै फल बृक्ष के, एक कछू नहिं षांइ ॥१९॥*
इस वृक्ष पर दो पक्षी वसते हैं, वे सदा समीप ही रहते हैं । परन्तु उनमें एक पक्षी उस वृक्ष के फलों का भोक्ता है, किन्तु दूसरा नहीं ॥१९॥
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*जिवातम परमातमा, ये दो पक्षी जांन ॥*
*सुन्दर फल तरु के तजैं, दोऊ एक समांन ॥२०॥*
यहाँ इन दोनों पक्षियों में, मायोपहित चेतना को जीव कहते हैं तथा माया से अलिप्त चेतन को ब्रह्म कहते हैं । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – यदि फल खाने वाला पक्षी भी फल छोड़ दे तो दोनों समस्थितिक ही जाते हैं ॥२०॥
तुल. दवा सुपर्णा सयुजा सखाया .........(मु. उप. ३/१)
(क्रमशः)

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