शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

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*पंच संतोषे एक सौं, मन मतिवाला मांहि ।*
*दादू भागी भूख सब, दूजा भावै नांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्‍वास का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *संतोष* 
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एक मनुष्य महा गरीब था, एक दिन उसे पृथ्वी में पांच भांड(हांडे, बर्तन) धन के मिले । उन्हें पाकर तो बड़ा प्रसन्न हुआ किन्तु फिर उसे वैसे ही छठे हांडे को धन से भरने की चिन्ता लग गई । 
किन्तु बीच ही में एक दिन घर में चोर आ धुसे और सब कुछ ले गये । वह पहले से भी अधिक दुखी हो गया । यदि पांच हांडों से ही सन्तुष्ट रहकर खाता-पीता तो सुखी रहता किन्तु सन्तोष बिन धन पाकर भी दुखी रहा ।
बिना तोष धन हुये भी, होत नहीं सुख लेश ।
पांच भांड पा छठे के, सहा भरणहित क्लेश ॥२६३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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