रविवार, 24 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*कर्मै कर्म काटै नहीं, कर्मै कर्म न जाइ ।*
*कर्मै कर्म छूटै नहीं, कर्मै कर्म बँधाइ ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
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कर्म की गति गहन है। गहन अर्थात सूक्ष्म। पता नहीं चलता, रहस्यपूर्ण है। कब कर्म होता, कब अकर्म होता, यह तो है ही कठिनाई। कर्म कभी-कभी निषिद्ध कर्म भी होता है, तब और कठिनाई है। निषिद्ध कर्म के संबंध में थोड़ी बात विचार में ले लेनी चाहिए।
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निषिद्ध कर्म को दो ढंग से सोचा जा सकता है। एक तो, कि हम कुछ कर्मों को तय कर लें कि ये निषिद्ध हैं, जैसा कि न्यायालय करता है। संविधान, कर्म तय कर लेता है कि ये निषिद्ध हैं। चोरी करना निषिद्ध है; हत्या करना निषिद्ध है; आत्महत्या करना निषिद्ध है। कुछ कर्म तय कर लिए हैं। ये निषिद्ध हैं, ये नहीं करने चाहिए।
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परन्तु संविधान बहुत सूक्ष्म नहीं होता। धर्म और भी सूक्ष्म खोज करता है। धर्म जानता है कि कभी-कभी कोई कर्म किसी परिस्थिति में निषिद्ध हो जाता है और किसी परिस्थिति में निषिद्ध नहीं होता। हत्या साधारणतया निषिद्ध है, युद्ध के मैदान पर निषिद्ध नहीं होती है।
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निषिद्ध निर्णीत वस्तु नहीं है; परिस्थिति के साथ बदल जाती है। और कभी-कभी तो ऐसा होता है कि दो निषिद्ध कर्मों के बीच विकल्प खड़ा हो जाता है। क्या करे ? सच बोलो, तो हिंसा हो जाती है। हिंसा बचाओ, तो झूठ बोलना पड़ता है। फिर क्या करो? दो निषिद्ध कर्म आड़े खड़े हो जाते हैं। एक को बचाओ, तो दूसरा निषिद्ध कर्म होता है। दूसरे को बचाओ, तो पहला हो जाता है।
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श्री कृष्ण कहते हैं, जटिल है, गहन है कर्म की गति। उस कर्म की गहन गति को ठीक से समझने के लिए पहले तो निषिद्ध कर्म के तत्व को ठीक से समझ लेना चाहिए। कर्म और अकर्म को तो समझना ही चाहिए, निषिद्ध कर्म को भी ठीक से समझ लेना चाहिए। क्योंकि कर्म और अकर्म तो अंतिम है। परन्तु निषिद्ध कर्म, हर दिन का प्रश्न है। उठे नहीं, कि निर्णय करना पड़ता है कि क्या करें।
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श्री कृष्ण कहते हैं, कर्म की गति गहन है। इधर से छोड़ो, उधर से पकड़ लेती है। उधर से छोड़ो, इधर से पकड़ लेती है। तो निषिद्ध कर्म क्या है, इसे ठीक से जान लेना आवश्यक है। और जो इसे ठीक से नहीं जान पाए, तो कर्म-अकर्म को जानना तो बहुत दूर है; अक्सर वह निषिद्ध कर्मों में ही जीवन को गंवा देता है। एक से बचता है, दूसरे में उलझ जाता है। जीवन का रास्ता कुएं और खाई के बीच है। इधर गिरो तो कुआं है, उधर गिरो तो खाई है। और बीच में चलना बहुत कठिन है। बारीक है; तलवार की धार जैसा है। इतना बारीक है कि सम्हलना कठिन है बीच में।

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