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*दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।*
*सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
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एक वन में एक मृग और एक मृगी सोये पड़े थे । वहां एक व्याध आ निकला, और उन दोनों को एक साथ मारने का उपाय सोचने लगा। अन्त में निश्चय किया, वाण से मारने से तो एक मरेगा और एक भाग जायेगा । फिर उसने एक ओर तो जाल बिछा दिया, दूसरी ओर अग्नि लगा दी तीसरी ओर अपने कुत्ते को खड़ा कर दिया । चौथी ओर धनुष पर वाण चढा कर स्वयं खड़ा हो गया ।
इतने में मृग जाग गये । चारों ओर मार्ग बन्द देखकर भगवत् के शरण हुये । भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ली और चारों मार्ग एक साथ खोल दिये । वायु बदला, जाल में अग्नि लग गई । तत्काल पानी बरस कर अग्नि बुझ गई । व्याध के पैर को अकस्मात् सर्प ने काटा, इससे व्याध का हाथ धूम गया और निशाना चूक करके बाण कुत्ते को जा लगा, कुत्ता मर गया, व्याध बेहोश हो गया, मृग भाग गये ।
इससे सुचित होता है कि ऐसे विपद समय में(मुश्किल घड़ी में) ईश्वर बिना कौन सहायता कर सकता है ? कोई नहीं ।
कठिन विपद के समय में, हरि बिन कौन सहाय ।
मृग दंपति को रख लिया, चारों घात नशाय॥११०॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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