रविवार, 10 नवंबर 2019

स्मरण का अंग ५/९


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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी 
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग . २)*
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*दादू नीका नांव है, हरि हिरदै न बिसारि ।* 
*मूरति मन मांहैं बसै, सांसैं सांस संभारि ॥५॥* 
रामनाम-साधना को सर्वश्रेष्ठ साधना मानकर अपने हृदय में भगवान् की मूर्ति का प्रतिक्षण स्मरण करते रहना चाहिये । क्योंकि भागवत में लिखा है - 
“भगवान् श्रीकृष्ण के चरणारविन्द की स्मृति पापों को नष्ट करती है, अन्तःकरण को शुद्ध करती है, परमात्मा की भक्ति देती है, ज्ञान-विज्ञानयुक्त वैराग्य-उत्पन्न कर भगवान् को वश में कर लेती है ॥५॥” 
*सांसैं सांस संभालतां, इक दिन मिलि है आइ ।* 
*सुमिरण पैंडा सहज का, सतगुरु दिया बताइ ॥६॥* 
प्रतिश्वास हरिस्मरण करने वाले साधक के चित्त में भगवान् अवश्य कभी न कभी प्रकट होंगे, यदि श्रद्धा होगी तो । यह स्मरणात्मक मार्ग ही सहजावस्था प्राप्ति का मार्ग है । मेरे गुरुदेव ने मुझे प्रथम दीक्षाकाल में बता दिया था ॥६॥ 
*दादू नीका नांव है, सौ तू हिरदय राखि ।* 
*पाखंड प्रपंच दूर करि, सुन साधुजन की साखि ॥७॥* 
विषय तथा पाखण्ड से रहित मन के द्वारा अपने हृदय में स्थित हरि का सतत् स्मरण रखना चाहिये - ऐसा सत्पुरुषों का कथन है । कहा है - 
“अपने हृदयकमल में स्थित रमापति भगवान् को तेजोमय शरीरवाला मानकर, सुस्थिर होकर, उसका स्मरण करना चाहिये । उनका ध्यान करने से समग्र पाप नष्ट हो जाते हैं । अतः जो मानव राग-द्वेषरहित परमात्म तत्त्व को जानने वाले देवताओं के भी गुरु नारायण का निरन्तर स्मरण करते हैं । उनका ध्यान करने से समग्र पाप नष्ट हो जाते हैं । अतः फिर वे माता-पिता का स्तनपान करने के लिये इस संसार में जन्म नहीं लेते । 
भगवान् का नाम-कीर्तन करने से इस जन्म तथा अन्य जन्म कृत समग्र पाप नष्ट हो जाते हैं ॥७॥” 
*दादू नीका नांव है, आप कहै समझाइ ।* 
*और आरम्भ सब छाड़ दे, राम नाम ल्यौ लाइ ॥८॥* 
“हे अर्जुन ! मेरा भक्त बहुत शीघ्र ही धर्मात्मा होकर शाश्वत शान्ति को प्राप्त कर लेता है । और तूँ यह निश्चित समझ ले कि मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता है ।” इत्यादि वचनों से भगवान् स्वयं नाम साधना को अर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं । 
“अतः सब कर्मों का त्यागकर केवल मेरी शरण में आ जा, मैं तुझे सर्व पापों से मुक्त करा दूंगा । तूं चिन्ता न कर ।” 
“जो एक बार भी भगवान् की शरण में जाकर यह कह देता है कि ‘हे भगवान् ! मैं आपका हूँ’, तो उसको मैं सर्व भूतों से अभयदान दे देता हूँ - यह मेरा प्रण है ॥८॥” 
*राम भजन का सोच क्या, करता होइ सो होइ ।* 
*दादू राम संभालिये, फिर बुझिये न कोइ ॥९॥* 
राम नाम की साधना करने वाले साधक को शरीर निर्वाहादि की चिन्ता नहीं करनी चाहिये; क्योंकि भक्त के योगक्षेम की पूर्ति, भगवत्कृपा से, अपने आप होती रहती है । उसे तो फलानुसन्धान शून्य होकर भगवत्स्मरण ही करना चाहिये । जो होने वाला है वह अवश्यमेव होगा ही । 
गुरु के साथ अधिक प्रश्नोत्तर करके विवाद भी नहीं करना चाहिये । किन्तु दृढ़ निष्ठा के साथ विश्वासपूर्वक प्रसन्न मन से हरि का स्मरण ही करना चाहिये । गीता में लिखा है- 
“जो मनुष्य अनन्य मन से मेरा चिन्तन करते हैं उनका योगक्षेम मैं चलाता हूँ” ॥९॥ 
(क्रमशः)

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