बुधवार, 27 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
१११ - समर्थ गुरु महिमा । त्रिताल
भाई रे, ऐसा सतगुरु कहिये, 
भक्ति मुक्ति फल लहिये ॥टेक॥
अविचल अमर अविनाशी, 
अठ सिधि नव निधि दासी ॥१॥
ऐसा सतगुरु राया, चार पदारथ पाया ॥२॥
अमी महारस माता, अमर अभय पद दाता ॥३॥
सतगुरु त्रिभुवन तारै, दादू पार उतारै ॥४॥
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समर्थ सद्गुरु की महिमा कह रहे हैं - अरे भाई ! ऐसा व्यक्ति ही सद्गुरु कहा जाता है - जिससे साधक भक्ति और मुक्ति को प्राप्त कर सके और जो निश्चल, अमर, अविनाशी ब्रह्म में अभेद निष्ठा रखता हो, जिसकी सेवा में अष्ट - सिद्धि और नव - निधि दासीवत् रहती हों, ...
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जिसने अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों पदार्थ प्राप्त कर लिये हों, ऐसा महानुभाव ही श्रेष्ठ सद्गुरु कहा जाता है । 
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जो अद्वैतामृत महारस में मस्त और अमर, अभय पद को प्रदान करने वाला होता है, ...
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वही सद्गुरु वैराग्य पूर्ण उपदेश द्वारा त्रिभुवन के विषयों की आशा से बचा कर सँसार - सिन्धु से पार करता है । अष्ट सिद्धि और नव निधि के नाम अँग २ - १०४ में देखो ।
(क्रमशः)

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