सोमवार, 18 नवंबर 2019

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*दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।*
*परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *दया* 
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फरदकोट(पंजाब) में दादूपंथी अवधूत संत धनीरामजी मैदान में बैठकर साधना करने लगे । वहां मच्छर बहुत थे, उनके शरीर को काटने लगे । उनके काटने से शरीर पर रक्त भी चमकने लगा किन्तु उनने यह सोचकर कि ये भी खालें इनके खाने से शरीर कम थोड़े ही हो जायेगा । मच्छरों को नहीं उड़ाया । 
तीन दिन तक खुब काटते रहे, फिर चोथे दिन से मच्छरों ने काटना छोड़ दिया । शरीर पर बैठते थे धूमते थे किन्तु काटते न थे, यह उनकी दया की ही विशेषता थी।
मच्छरों को भी दयालु, तन से नहीं उड़ाया ।
रक्त चमकने पर नहीं, धनीराम अकुलाय॥१४४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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