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*दादू सेवक सांई वश किया, सौंप्या सब परिवार ।*
*तब साहिब सेवा करै, सेवक के दरबार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *पाद सेवन भक्ति*
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नरहरियानन्दजी सदा भगवत् चरण सेवा में ही लगे रहते थे । एक दिन भगवत भोग के लिए रसोई बनाने लगे किंतु सूखी लकड़ी नहीं मिली, तब वह सोच कर कि भगवान के भोग तो समय पर अवश्य लगाना ही है । अपने समीप के दुर्गा मंदिर की छत लकड़ियों की थी वे उस छत को उखाड़ने लगे ।
शक्ति(दुर्गाजी) उनकी भगवत् सेवा से प्रसन्न होकर बोली - "छत को नहीं तोड़ो, लकड़ियां आपके सदा आवश्यकतानुसार पहुँचती रहेगी । वे लौट आये ।"
दुर्गाजी प्रतिदिन आवश्यकतानुसार लकड़ियां उनके यहां पहुंचा देती थीं । उनके पड़ोसी की स्त्री को ज्ञात हुआ तब उसने भी अपने पति को कहा - 'तुम भी जाकर दुर्गा को डराओ, जिससे प्रतिदिन बिना परिश्रम ही लकड़ियां घर आ जाया करेंगी ।" वह दुर्गा के मंदिर में जाकर ज्योंही छत उखाड़ने लगा कि उसका शिर नीचे और पैर ऊपर हो गया वहां ही लटकने लगा ।
उसने दुर्गा से प्रार्थना करी तब दुर्गा ने कहा - "यदि तू मेरे बदले प्रति दिन नरहरियानन्दजी के लकड़ियां पहुंचा दिया करे तब तो तेरे प्राण बच सकते हैं, नहीं तो अभी प्राण लेती हूं ।" उसने स्वीकार कर लिया और प्रति दिन पहुंचाने लगा । इससे सूचित होता है कि भगवत पाद सेवक की सेवा भी करते हैं ।
पद सेवक की देव भी, करत सेव सह प्रेम ।
काष्ट नरहरियानन्द के, पटका शक्ति सनेम॥१२३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###
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