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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (हार बंध. १२) =*
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*मनहर*
*जग मग पग तजि सजि भजि रांम नांम,*
*कांम कौ न तन मन घेर घेर मारिये ।*
*झूंठ मूंठ हठ त्यागि जागि भागि सुनि पुनि,*
*गुनि ग्यांन आंन आंन वारि वारि डारिये ॥*
*गहि ताहि जाहि शेष ईश सीस सुर नर,*
*और बात हेत तात फेरी फेरी जारिये ।*
*सुन्दर दरद खोइ धोइ धोइ बार बार,*
*साध संग रंग अंग हेरि हेरि धारिये ॥२२॥*
संसार के कुत्सित मार्ग का त्याग कर रामनाम का स्मरण कर । अन्यथा ये कामवासनाएं तेरे तन एवं मन को अपने बंधन से लेकर तुझे नष्ट कर डालेंगी । तूँ इस मिथ्या हठ का त्याग कर दे । इससे दूर हट कर, गुणी जनों के उपदेश ग्रहण करता हुआ अन्य सांसारिक मिथ्या कल्पनाओं को अपने से दूर फेंक दे ।
इनके बदले उन सदुपदेश का ग्रहण कर जिनको शेष, शंकर एवं अन्य मुनिजनों ने ग्रहण किया है । *महात्मा सुन्दरदासजी* कहते हैं – इस प्रकार, तेरा वह मानसिक क्लेश भी विनष्ट हो जायगा, जिसको धोने के लिए तूँ अन्य अन्य उपाय कर रहा है । अतः यही उचित होगा कि तूँ सत्संग करता हुआ श्रवण, मनन, निदिध्यासन द्वारा अपने अज्ञान को नष्ट कर, साधुओं के उपदेश को खोज खोज कर अपने मन में धारण कर ले ॥२२॥
(क्रमशः)

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