बुधवार, 27 नवंबर 2019

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*मन मनसा का भाव है, अन्त फलेगा सोइ ।*
*जब दादू बाणक बण्या, तब आशय आसण होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *वात्सल्य भक्ति* 
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एक सकड़ी गली में एक और से कुछ गायें आ रही थी और दुसरी और एक विशेष आचारवान मनुष्य स्नान करके आ रहा था । गली में दो-तीन वर्ष का एक लड़का खेल रहा था । जब गायें उसके पास आई तो उस मनुष्य ने जोर जोर से पुकारा - यह बालक किसका है इसे शीध्र उठाओ । उसे दया आने पर भी मैं उठाउंगा तो अशुद्ध हो जाऊंगा इस विचार से उसने नहीं उठाया । 
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कुछ दूर जाने पर उस मनुष्य का पुत्र भी कीच मिट्टी आदि से अशुद्ध हुआ गली में खेल रहा था । उसके पास भी गायें आ पहुची । यह देखकर उसे अपनी अशुद्धि का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा, वह धैर्य छोकर भागा और लके को उठा गले से लगा लिया । इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्ति में आचार में कुछ भी ज्ञान नहीं रहता ।
आचार बोध कुछ नहिं रहे, भक्ति वात्सल्य माँहि ।
परसुत तज निजसुत उठा, लिया रुका वह नांहि ॥२५५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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