🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू जानै बूझै जीव सब, गुण औगुण कीजे ।*
*जान बूझ पावक पड़ै, दई दोष न दीजे ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
अहं कर्ता इति मैं कर्ता हूं, ऐसी हमारी धारणा है। उस धारणा के अनुसार हमारा अहंकार निर्मित होता है। कर्ता यानी अस्मिता। मैं कर्ता हूं, उसी से हमारा अहंकार निर्मित होता है। इसलिए जितना बड़ा कर्ता हो उतना बड़ा अहंकार होता है। हमारा कर्तव्य हमारे अहंकार को भरता है।‘मैं कर्ता हूं अहं कर्ता इति ऐसे अहंकार रूपी अत्यंत काले सर्प से दंशित हुआ तू व्यर्थ ही पीड़ित और परेशान हो रहा है।’
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यह पीड़ा कोई बाहर से नहीं आती। यह दुख जो हम झेलते हैं, अपना निर्मित किया हुआ है। जितना बड़ा अहंकार उतनी पीड़ा होगी। अहंकार घाव है। जरा सी हवा का झोंका भी दर्द दे जाता है। निरहंकारी व्यक्ति को दुखी करना असंभव है। अहंकारी व्यक्ति को सुखी करना असंभव है। अहंकारी व्यक्ति ने तय ही कर लिया है कि अब सुखी नहीं होना है।
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क्योंकि सुख आता है ‘हां’ भाव से, स्वीकार भाव से। सुख आता है यह बात जानने कि मैं क्या हूं? एक बूंद हूं सागर में ! सागर की एक बूंद हूं! सागर ही है, मेरा होना क्या है? जिस व्यक्ति को अपने न होने की प्रतीति सघन होने लगती है, उतने ही सुख के अंबार उस पर बरसने लगते हैं। जो मिटा वह भर दिया जाता है। जिसने अकड़ दिखायी, वह मिट जाता है। मैं कर्ता नहीं हूं, ऐसे भाव अमृत है। अहं न कर्ता इति यही अमृत है।
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इसका एक अर्थ और भी समझ लेना चाहिए। वो ये कि केवल अहंकार ही मरता है, हम कभी नहीं मरते। इसलिए अहंकार मृत्यु है, विष है। जिस दिन हमने जान लिया कि अहंकार है ही नहीं, बस मेरे भीतर परमात्मा ही है, उसका ही एक फैलाव, उसकी एक किरण, उसकी ही एक बूंद हैं, फिर हमारी कोई मृत्यु नहीं. फिर हम अमृत हैं। कभी नहीं मरते। इसलिए अहंकार मृत्यु है, विष है।
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