#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - ३/४ =*
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*तीनौं पन मैं ह्वै जती । नख शिख पावै चैन ॥*
*तीक्षण होइ महा मती । नर हरि देषै नैन ॥३॥*
यदि कोई साधक बाल्यावस्था, युवावस्था एवं वृद्धावस्था में संयम(इन्द्रियनिग्रह) पूर्वक रहता है तभी उसका नख से शिखा तक समस्त शरीर परम सुख का अनुभव कर सकता है । इसके परिणामस्वरूप वह साधक अपने जीवन में ‘तीक्ष्णमति’ एवं ‘महामति’ हो सकता है तथा साधना द्वारा भगवान् का साक्षात्कार कर सकता है ॥३॥
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*चारि बेदकी सुनि रिचा । रिस आपनी निवारि ॥*
*चाहि छाडि ज्यौं ह्वै सचा । रिण सिर तैं जू उतारि ॥४॥*
चारों वेदों के मन्त्रश्रवण के पुण्यप्रभाव से अपने सभी मनोदोषों का निवारण कर ले । इसके परिणामस्वरूप, तुम सत्याचरण करते हुए अपने शिर से तीनों ॠण(पितृ ॠण, ॠषि ॠण एवं देवॠण) उतार सकोगे ॥४॥
(क्रमशः)

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