बुधवार, 20 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू जेते गुण व्यापैं जीव को, ते ते ही अवतार ।*
*आवागमन यहु दूर कर, समर्थ सिरजनहार ॥*
*सब गुण सब ही जीव के, दादू व्यापैं आइ ।*
*घट मांहि जामैं मरै, कोइ न जाणै ताहि ॥*
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अर्जुन ने एक बहुत ही गहरा प्रश्न श्री कृष्ण से पूछा। अर्जुन ने कहा, यदि सब कुछ परमात्मा ही कर रहा है, यदि सब कुछ प्रकृति के गुणधर्म से ही हो रहा है, यदि सब कुछ सहज ही प्रवाहित है और यदि व्यक्ति उत्तरदायी नहीं है, तो पाप कर्म न चाहते हुए भी क्यों कर रहा हैं, मनुष्य बलात पाप कर्म क्यों कर लेता है? कौन करवा देता है? यदि परमात्मा ही चला रहा है सब कुछ और मैं भी नहीं चाहता कि बुरा कर्म करूं, और परमात्मा चला रहा है सब कुछ, फिर भी मैं बुरे कर्म में प्रवृत्त हो जाता हूं तो बलात मुझे कौन बुरे कर्म में धक्का दे देता है?
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गहरा प्रश्न है। कहना चाहिए कि मनुष्य जाति में जो गहरे से गहरे प्रश्न उठाए गए हैं, उनमें से एक है। गहरे से गहरा प्रश्न यह उठा है कि यदि परमात्मा ही चला रहा है और हम भी नहीं चाहते। और फिर आप तो कहते हैं कि हमारे चाहने से कुछ होता नहीं। हम चाहें भी, तो भी परमात्मा जो चाहता है, उससे अन्यथा नहीं हो सकता। और हम चाहते भी नहीं कि बुरा कर्म करें और परमात्मा तो चाहेगा क्यों कि बुरा कर्म हो, फिर कौन हमें धक्के देता है? और बलात बुरे कर्म करवा लेता है? यह बुराई कहां से आती है?
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इसलिए श्री कृष्ण ऐसा उत्तर नहीं देते हैं। श्री कृष्ण बहुत मनोवैज्ञानिक उत्तर देते हैं। वे यह कहते हैं, प्रकृति के तीन गुण हैं, रजस, तमस और सत्व। उनका उत्तर बहुत वैज्ञानिक है। वे कहते हैं, प्रकृति त्रिगुणा है।
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*और मैं आपको यह कहूं कि यह तीन गुणों की बात जब श्री कृष्ण ने कही थी, तब बड़े वैज्ञानिक आधार रखती थी। परन्तु श्री कृष्ण के बाद पिछले पांच हजार सालों में जितने लोगों ने कही, उनको इसके विज्ञान का कुछ बोध नहीं था। दोहराते रहे। परन्तु अभी पश्चिम में पिछले ४० वर्ष में विज्ञान ने फिर कहा कि प्रकृति त्रिगुणा है। जिस दिन हम आधुनिक सदी में परमाणु का विश्लेषण कर सके, परमाणु को तोड़ सके, उस दिन बड़े चकित होकर हमें पता चला कि परमाणु तीन हिस्सों में टूट जाता है। पदार्थ का जो अंतिम परमाणु है, वह तीन हिस्सों में टूट जाता है, इलेक्ट्रान, न्यूट्रॉन और प्रोटान में टूट जाता है। और वैज्ञानिक कहते हैं कि इन तीन के बिना परमाणु नहीं बन सकता। और इन तीन के जो गुणधर्म हैं, वे वही गुणधर्म हैं, जो सत, रज और तम के हैं। ये तीन जो काम करते हैं, वे वही काम करते हैं, जो हम बहुत पुराने दिनों से सत, रज और तम शब्दों से लाते थे।*
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उसमें तमस जो है, वह अवरोध का तत्व है, स्थिरता का तत्व है। यदि तमस न हो, तो जगत में कोई भी वस्तु स्थिर नहीं रह सकती। हम एक पत्थर उठाकर फेंकते हैं। यदि जगत में कोई तमस न हो, कोई गुरुत्वाकर्षण बल न हो, रोकने वाली कोई शक्ति, अवरोधक न हो, तो फिर पत्थर कभी भी गिरेगा नहीं। फिर हमने फेंक दिया, फेंक दिया; फिर वह चलता ही रहेगा, अनंत काल तक। फिर वह गिरेगा कैसे? कुछ अवरोध हो, कोई हो जो रोकता हो। हम भी पृथ्वी पर नहीं हो सकेंगे। कभी के हम उड़ गए होते। वह जमीन खींच रही है, तमस, गुरुत्वाकर्षण बल का भार हमें रोके हुए है।
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ये तीन तत्व हैं, जिनको भारत ने ऐसे नाम दिए थे। पश्चिम जिनको इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान कहता, कोई और नाम दे, इससे कोई भेद नहीं पड़ता। एक बात बहुत अनिवार्य रूप सें सिद्ध हो गई है कि जीवन का अंतिम विश्लेषण तीन शक्तियों पर टूटता है। इसलिए हमने इन तीन शक्तियों को ये कई तरह से नाम दिए थे। जो लोग वैज्ञानिक ढंग से सोचते थे, उन्होंने रजस, तमस, सत्व ऐसे नाम दिए। जो लोग काव्यात्मक ढंग से सोचते थे, उन्होंने कहा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश। उनका भी काम वही है। वे तीन नाम भी यही काम करते हैं।
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उसमें ब्रह्मा सर्जक शक्ति हैं, विष्णु, पालने वाले वाले और शिव विनाश करने वाले। उन तीन के बिना भी नहीं हो सकता। ये जो इलेक्ट्रान, न्द्वान और प्रोटान हैं, ये भी ये तीन कार्य करते हैं। उसमें जो इलेक्ट्रान है, वह निगेटिव है। वह ठीक शिव जैसा है, निगेट करता है, तोड़ता है, नष्ट करता है। उसमें जो प्रोटान है, वह ब्रह्मा जैसा है, पाजिटिव है, इसलिए प्रोटान उसका नाम है। वह विधायक है, वह निर्माण करता है। और उसमें जो न्यूट्रॉन है, वह न निगेटिव है, न पाजिटिव है। वह सम हैं, जो समलता हैं, पालने वाला जिस को बोलते हैं।
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श्री कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य के भीतर जो भी घटित होता है, बाहर और भीतर, वह इन तीन शक्तियों का खेल है। इन तीन शक्तियों के अनुसार सब घटित होता है। मनुष्य को ये शक्तियां प्रेरित करती हैं, जैसे क्रोध, प्रेम जन्म मृत्यु, पाप पुण्य जो भी हम करते वो वह इन सारी तीन शक्तियों के कार्य है। ये तीन शक्तियां अपना कार्य करती रहती हैं। ये परमात्मा के तीन रूप जीवन को सृजन देते रहते हैं। ये हमारी यात्रा पर निर्भर है, कि हम में कोनसा गुण प्रबल हैं, सतो गुण, रजो गुण, अथवा तमो गुण।

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