बुधवार, 13 नवंबर 2019

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*पावन पीव चरण शरण, युग युग तैं तारे ।*
*अनाथ नाथ दादू के, हरि जी हमारे ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ४२६)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *मौन* 
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एक समय गरुड़जी ने एक छोटे से अहि(सर्प) को खाने की इच्छा की । सर्प अपने प्राण बचाने के लिये विष्णुजी के सिंहासन के निचे जा घुसा । गरुड़ उसको खाने के लिये सामने बैठ गये तब विष्णुजी ने यह सोचकर कि गरुड़ मेरे शरणागत को भी खाना चाहता है, सर्प को वर दे दिया तू गरुड़ को खाने में समर्थ हो । सर्प निर्भय होकर गरुड़ पर झपटा तब पक्षिराज प्रार्थना करके उससे बचे । इससे ज्ञात होता है कि बड़ों की शरण लेने से बल की वृद्धि होती है ।
शरण लिये से बड़ों की, शक्ति वृद्धि भल होय ।
लधु अहि को भी गरुड़जी, मार सके नहिं कोय ॥६५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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