बुधवार, 13 नवंबर 2019

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*साधु सदा संयम रहै, मैला कदे न होइ ।*
*दादू पंक परसै नहीं, कर्म न लागै कोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *शान्ति* 
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पुरी मे माधवदासजी भिक्षा को गये थे । एक घर पर माई चौका लगा रही थी । माधवदासजी का शब्द सुन कर क्रोध में भरकर के चौका देने का कपड़ा माधव दासजी के शिर में मारा । उन्होने हँसते हुवे उस कपड़े को उठा लिया और पानी से साफ करके बत्ती बनाकर के जगन्नाथ जी के मंदिर दीपक जला दिया । 
इससे माई का मन प्रवित्र हो गया । दूसरे दिन माधवदासजी जब भिक्षा को गये तो वह माई दौड़ कर माधवदासजी के चरणों मे पड़ गई । इससे सुचित होता है कि शांत पुरुष के चोट मारने पर भी वह अशांत नहीं होता ।
चोट मारने पर भी, होते शांत अशांत ।
लीपणपोता सिर लगे, माधव रहे सुशांत ॥३६८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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