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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - ७/८ =*
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*आयौ ठाहर अबस आ । ठहरायौ दिठ पीठ ॥*
*आशा तृष्णा छाडि आ । ठबकि लियौ मन धीठ ॥७॥*
“अब तुम अपने प्राप्तव्य स्थान पर पहुँच गये हो ।” – ऐसा कहकर उसको आसन देकर बैठाया । “अरे मन ! तूँ सांसारिक आशा तृष्णा त्याग कर मेरे पास बैठ !” – ऐसा कहकर उस पर धृष्ट मन को अपने पास ही बैठा लिया ॥७॥
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*घेरि पंच पर्वत लंघे । रिद्धि सिद्धि दी डारि ॥*
*माती हरि रस सौं उमा । रिझये शिव शिवनारि ॥८॥*
पांचों पर्वतों(तत्वों या इन्द्रियों) को घेर(निगृहित) कर लिया । ॠद्धि सिद्धि आदि चामत्कारिक बातों की “करामति कलंक है ........” (दा.बा. .........) इस गुरु के आदेश के अनुसार उपेक्षा कर दी । वह पार्वती के समान भगवद्भजन में मग्न हो गयी । तब भगवान् उस पर उसी प्रकार प्रसन्न हो गये, जैसे शिव पार्वती(माया) पर प्रसन्न हुए थे ॥८॥
(क्रमशः)

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